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‘SCAD’ है बेहद खतरनाक…जानें महिलाओं को ही क्यों बनाती है शिकार, बचने का क्या है तरीका

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SCAD Heart Attack : पिछले कुछ सालों में हार्ट अटैक के मामले तेजी से बढ़े हैं. कम उम्र के लोग भी इसका शिकार बने हैं. कई रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड के बाद से हार्ट अटैक के मामलों में काफी इजाफा हुआ है. सडेन हार्ट अटैक 30 से कम उम्र वालों के लिए जानलेवा भी बनी है. हार्ट अटैक वैसे तो किसी को भी हो सकता है लेकिन शोधकर्ताओं के मुताबिक, SCAD हार्ट अटैक का खतरा महिलाओं में सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है. SCAD का फुल फॉर्म स्पॉन्टेनियस कोरोनरी आर्टरी डिसेक्शन होता है. यह हार्ट अटैक का ही प्रकार है, जो जानलेवा हो सकता है. वैसे तो यह समस्या किसी में भी हो सकता है लेकिन महिलाओं में इसका रिस्क सबसे ज्यादा होता है. आइए जानते हैं क्या है यह समस्या और इससे बचने के उपाय…

 

SCAD हार्ट अटैक क्या है

SCAD हार्ट अटैक एक इमरजेंसी सिचुएशन है. इसकी वजह से हार्ट में ब्लड सर्कुलेशन में परेशानी आ सकती है. जिसकी वजह से हार्ट अटैक आ सकता है. अचानक होने से इसमें मौत भी हो सकती है. हार्ट एंड स्ट्रोक फाउंडेशन ऑफ कनाडा की एक रिपोर्ट बताती है कि करीब 90 परसेंट एससीएडी के मामले महिलाओं में ही पाए जाते हैं. इन महिलाओं की उम्र 30-60 साल है. 60 की उम्र से पहले महिलाओं में हार्ट अटैक के जितने केस आते हैं, उसमें करीब 25% एससीएडी ही होता है.

 

SCAD हार्ट अटैक से महिलाएं बचके रहें

सबसे बड़ा सवाल यह है कि SCAD हार्ट अटैक महिलाओं को ही अपना शिकार ज्यादातर क्यों बनाता है. इसको लेकर रिपोर्ट्स बताती हैं कि प्रेग्नेंसी में या इससे बाद महिलाओं में इसका खतरा ज्यादा रहता है. डिलीवरी के बाद कुछ हफ्तों तक एससीएडी का जोखिम ज्यादा रहता है. इस दौरान लेवर प्रेशर की वजह से रक्त वाहिकाएं कमजोर होती हैं, जिसकी वजह से उनका तनाव बढ़ सकता है और यही टिअर की वजह बन जाती है.

 

SCAD का कारण

एक्सपर्ट भी अभी पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं कि आखिर एससीएडी होता क्यों है. उनका मानना है कि इसका कारण फीमेल हार्मोन्स हो सकती हैं. पीरियड्स या पोस्टमेनोपॉज में इस बीमारी का जोखिम काफी ज्यादा रहता है. यह संकेत हो सकता है कि फीमेल हार्मोन में इन दौरान काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है. वैसे तो इस बीमारी का कोई लक्षण नहीं होते लेकिन कुछ संकेत से इसका पता लगाया जा सकता है.

 

SCAD का लक्षण

  • चक्कर आना या बेहोशी
  • ज्यादा पसीना आना
  • धड़कन कम या ज्यादा होना
  • हाथ, कंधे या जबड़े में मस्कुलोस्केलेटल दर्द होना
  • सांस लेने में परेशानी

Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.

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