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बच्चे के लिए तरस रही थी बेटी, मां ने अपना Uterus दान में दे कर गोद में भर दी खुशियां

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Uterus Transplant: कहां जाता है इस पृथ्वी पर भगवान के बाद अगर किसी का स्थान होता है तो वह ‘मां’ होती है. भगवान इंसान बनाता है लेकिन उस इंसान को जन्म देने का काम मां करती हैं. इस दुनिया में मां की जगह कोई नहीं ले सकता है. हर रिश्ते से ऊपर मां का रिश्ता होता है जो अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर सकती है. एक औरत 9 महीने के लंबे इंतजार के बाद अपने बच्चे को जन्म देती है. यह 9 महीना आसान नहीं होता बल्कि काफी मुश्किलों से भरा होता है. लेकिन इस 9 महीने के लंबे इंतजार के बाद जब वह अपने बच्चे को गोद में लेती हैं तो उससे ज्यादा खुशनुमा पल कुछ और नहीं हो सकता है. वह सारी दुख तकलीफ भूल जाती हैं. वहीं दूसरी तरफ इस दुनिया में कई ऐसी मां हैं जिन्हें यह सौभाग्य प्राप्त नहीं होता है. कई ऐसी औरतें हैं जो कभी मां नहीं बन पाती हैं. तो कई ऐसी हैं जिन्हें जन्म से ही यूटरस नहीं है और वह अपने बच्चे का मुंह नहीं देख पाती. 

कई औरतें पैसे की कमी के कारण है जिंदगी भर बच्चे का मुंह देखने के लिए तरसती है वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो आइवीएफ और सैरोगेसी की मदद लेती हैं. इन सब के अलावा हाल ही में डॉक्टर्स ने एक और तरीका निकाला है जिसकी मदद से मां गर्भधारण कर सकती हैं.. एक बच्चे को जन्म देना किसी भी औरत के लिए बेहद भावनात्मक पल होता है. लेकिन अगर आपको पता चले कि आप अपने दम पर बच्चे को जन्म नहीं दे सकते तो इससे बड़ा दुख आपके लिए कुछ भी नहीं होता है. लेकिन हाल ही के दिनों में मेडिकल साइंस की शानदार सफलता के कारण औरतों के बांझपन को हटाया जा सकता है.

क्या है हाइपोप्लेसिया की बीमारी

इन दिनों ‘यूटरस ट्रांसप्लांट’ के जरिए गर्भधारण कर सकती हैं और अपने बच्चे की हलचल महसूस कर सकते हैं. यूटरस ट्रांसप्लांट खासकर उन महिलाओं के लिए हैं जो हाइपोप्लेसिया से पीड़ित हैं. हाइपोप्लेसिमाय में बचपन से ही यूटरस ठीक ढंग से विकसित नहीं होती . या कई बार कई लड़कियों का जन्म से ही दो यूटरस होता है. इस बीमारी में लड़कियों को 16 साल तक पीरियड्स नहीं आते. इस बीमारी का पता शुरुआत में नहीं लग पाता. जब एक सही उम्र पर पीरियड नहीं तब डॉक्टर के चेकअप में पता चलता है कि लड़की को हाइपोप्लेसिया है. हाल ही में इस बीमारी से पीड़ित दो महिलाओं का चेन्नई में यूटरस ट्रांसप्लांट किया गया है. जो पूरी तरह से सफल रहा.

चेन्नई की दो महिलाओं का किया गया यूटरस ट्रांसप्लांट 

हाल ही में बेहद खूबसूरत वाक्या सामने आया है. चेक रिपब्लिक के स्पेशलिस्ट  सहित डॉक्टरों की एक टीम ने तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के दो लड़कियों का यूटरस ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया है. ‘हेपेटोलॉजी ट्रांसप्लांट’ हेपेटोलॉजी के निदेशक डॉ. जॉय वर्गीज ने गुरुवार को यहां घोषणा की कि मल्टी-ऑर्गन ट्रांसप्लांट सेंटर ग्लेनीगल्स ग्लोबल हेल्थ सिटी (जीजीएचसी) में यह मेडिकल उपलब्धि हासिल की है. एशिया की सबसे शानदार हॉस्पिटल की लिस्ट में शामिल हो गई है. यूटरस ट्रांसप्लांट एक ऐसा तरीका है जिससे हाइपोप्लेसिया से पीड़ित युवा महिलाएं भी अब मां बनने का सपना देख सकती हैं. GGHC के प्रसूति, स्त्री रोग और प्रजनन चिकित्सा विभाग की प्रमुख डॉ. पद्मप्रिया विवेक ने इस बारे में बताते हुए कहा,’हमने डॉ. जिरी फ्रोनेक की विशेषज्ञता के तहत दो एकदम यंग लड़कियों की जिसमें से एक की उम्र 24 साल और दूसरी की 28 साल की है उनका सफलतापूर्वक यूटरस ट्रांसप्लांट किया किया है.’

इन महिलाओं का ही हो सकता है यूटरस ट्रांसप्लांट

इन दोनों महिलाओं का दिसबंर के पहले सप्ताह में यूटरस ट्रांसप्लांट किया गया है. इसमें से एक महिला को उनकी मां ने अपना यूटरस दिया है. जिनकी उम्र 56 साल की है. एक महिला की उम्र 52 साल की हैं. यूटरस ट्रांसप्लांट तभी संभव है जब महिला की हेल्दी लाइफस्टाइल हो और उन्हें डायबिटीज न हो. 

आंध्र प्रदेश की रहने वाली 24 साल की महिला को उनकी मां ने अपना यूटरस दिया. इसके बाद भी उन्हें कई तरह के टेस्ट से गुजरना पड़ा. डॉनर जोकि उनकी मां थी पहले कुछ दिनों प्लाजमा एक्सचेंज किया है. इसके बाद तीन दिनों तक ऑब्जरवेशन में रखा गया. . यूटरस ट्रांसप्लांट करने से पहले ये सभी टेस्ट किए गए जैसे- बायोप्सी, स्कैन. इसके बाद 15 घंटे तक यूटरस ट्रांसप्लांट सर्जरी चला.

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