भगवान शिव के भक्त चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण करते हैं।
हम आपके लिए भगवान शिव और उनके सिर पर चंद्रमा की एक रोमांचक पौराणिक कहानी लेकर आए हैं।
पौराणिक कथाओं से परिचित सभी लोग जानते हैं कि भगवान शिव के दिल में बेलपत्र, भांग धतूरा और दूध अभिषेक जैसे अन्य चीजों के लिए एक विशेष स्थान है। इनमें से प्रत्येक वस्तु के प्रभु के साथ संबंध के पीछे एक कहानी होती है। एक और बात गौर करने वाली है कि भोलेनाथ की हर तस्वीर में उनके सिर पर चंद्रमा विराजमान है। पौराणिक कथाओं की माने तो उनके जुड़ाव के पीछे एक पौराणिक कथा है।
हम सभी देवता और राक्षसों के बीच प्रसिद्ध समुद्र मंथन से परिचित हैं। मंथन के फलस्वरूप समुद्र से हलाहल नामक विष निकला था। हलाहल के हानिकारक प्रभाव से दुनिया की रक्षा के लिए भगवान शिव ने स्वयं विष का सेवन किया था। उनके कंठ में विष जमा होने से कंठ नीला पड़ गया, जिससे नीलकंठ नाम पड़ा।
पौराणिक कथाओं के अनुसार विष के कारण भोलेनाथ को बुखार आने लगा और उन्हें ठंडा करने के लिए चंद्र जैसे देवताओं ने उन्हें चंद्रमा को अपने सिर पर धारण करने के लिए कहा ताकि उनके शरीर का तापमान सामान्य बना रहे। अनजान लोगों के लिए चंद्रमा बेहद शीतल माना जाता है। अंत में सबके कहने पर भगवान शिव ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया।
भगवान शिव के भक्त चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। चंद्रमा को भगवान शिव का अनिवार्य आभूषण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उन्हें खुश करना बेहद आसान है। जो कोई भी सच्चे मन से उनकी प्रार्थना करता है, महादेव उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
आगे यह भी माना जाता है कि सोमवार का व्रत और विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर हम भोलेनाथ को प्रसन्न कर सकते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जल-अभिषेक और दूध-अभिषेक के अलावा हर सोमवार को भगवान शंकर को बेलपत्र, भांग और धतूरा का भोग लगाना चाहिए।