https://bulletprofitsmartlink.com/smart-link/133310/4

होली का इतिहास, होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ क्यों कहते हैं?

Share to Support us


Holi 2023 Special, Holi History and Signifiacnce: होली को रंगों का त्योहार कहा जाता है, जिसे फाल्गुन माह के पूर्णिमा के दिन मनाए जाने की परंपरा चली आ रही है. इस साल होली 08 मार्च और होलिका दहन 07 मार्च 2023 है. होली को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्या है होली का इतिहास और क्यों इसे वसंत महोत्सव या काम महोत्सव भी कहा जाता है.

इतिहासकारों की माने तो होली का वर्णन कई पुरातन धार्मिक पुस्तकों में भी मिलता है. जैमिनी के पूर्व मीमांसा सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र, नारद पुराण, भविष्य पुराण और कई ग्रंथों में इसका वर्णन मिलता है. होली को प्राचीन त्योहार माना जाता है. होली को होलाका, होलिका और फगवान आदि नामों से भी जाना जाता है. जानते हैं आखिर कितना पुराना है होली का पर्व और क्या है इसका इतिहास.

 

होली का इतिहास

पौराणिक व धार्मिक कथाओं के अनुसार, होली पर्व मनाने की कथा दुष्ट राजा हिरण्यकश्यप से जुड़ी है, जोकि विष्णु भक्त प्रह्लाद के पिता थे. वह खुद को बहुत शक्तिशाली मानता था और कठोर तपस्या के बाद उसे शक्तिशाली होने का वरदान भी प्राप्त हुआ. लेकिन उसने अपनी शक्तियों को गलत प्रयोग किया. इतना ही नहीं वह लोगों को स्वयं को भगवान की तरह पूजने को कहता था. लेकिन उसके पुत्र प्रह्लाद का स्वभाव पिता से बिल्कुल अलग था. वह दिन रात भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था. प्रह्लाद के स्वभाव से पिता हिरण्यकश्य क्रोधित होते थे. उन्होंने कई बार प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से भी मना किया और खुद की पूजा करने को कहा. लेकिन प्रह्लाद ने पिता की एक ना सुनी.

आखिरकार हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जान से मारने का निर्णय कर लिया. उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठने को कहा. क्योंकि होलिका अग्नि से जल नहीं सकती थी. लेकिन भगवान की महिमा ऐसी हुई कि, होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद का बाल भी बांका ना हुआ. क्योंकि प्रह्लाद होलिका की गोद में बैठकर भी भगवान का नाम जपता रहा. इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया. इसलिए होली के त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर सदियों से मनाया जा रहा है और होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन की जाती है.

प्राचीन त्योहार है होली

  • होली हिंदू धर्म के प्रमुख और प्राचीन त्योहारों में एक है. इसका इतिहास इतना पुराना है कि इसे ईसा मसीह के जन्म से कई सदियों पहले से ही मनाया जा रहा है.
  • होली मनाने का उल्लेख जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र (400-200 ईसा पूर्व) में भी मिलता है.
  • प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली से संबंधित बनी मूर्तियां मिलती हैं. 16वीं सदी का मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है. इस मंदिर में होली के कई दृश्य चित्रित हैं, जिसमें राजकुमार और राजकुमारी अपने दासों समेत एक-दूसरे पर रंग लगाते हुए नजर आ रहे हैं.
  • कई मध्ययुगीन चित्र, जैसे कि 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र, मेवाड़ पेंटिंग, बूंदी के लघु चित्र आदि में भी विभिन्न तरीके से होली खेलते हुए दिखाया गया है.
  • विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ में स्थित ईसा से 300 वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी होली का उल्लेख किया गया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि होली ईसा से 300 वर्ष पूर्व भी मनाई जाती थी.
  • काठक गृह्य सूत्र के एक सूत्र के अनुसार, ‘होला कर्मविशेष: सौभाग्याय स्त्रीणां प्रातरनुष्ठीयते। तत्र होलाके राका देवता।’. इसका अर्थ है, होला एक कर्म विशेष है, जो स्त्रियों के सौभाग्य के लिए संपादित होता है. इसमें राका जोकि पूर्णचंद्र देव हैं.
  • प्राचीनकाल में होली को ‘होलाका’ कहा जाता था. होली के दिन आर्य नवात्रैष्टि यज्ञ और हवन कराते थे. माना जाता है कि शायद इसलिए इसका नाम होलिका उत्सव रखा गया होगा.
  • त्रैतायुग के शुरुआत में भगवान विष्णु ने धूलि वंदन किया था और इसलिए धुलेंडी मनाए जाने की परंपरा है. वहीं होलिका दहन के दूसरे दिन रंगोत्सव मनाने की परंपरा की शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण के काल से मानी जाती है. फाल्गुन मास में पड़ने के कारण इसका नाम फगवाह था.

होली को क्यों करते हैं वसंत महोत्सव या काम महोत्सव

होली का पर्व वसंत ऋतु में मनया जाता है. मान्यता है कि वसंत ऋतु में मनाए जाने के कारण इसे वसंत महोत्सव और काम महोत्सव कहा गया है. कामदेव से जुड़ी कथा के अनुसार, सतयुग में इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म करने के बाद रति को श्रीकृष्ण के यहां कामदेव के जन्म होने का वरदान दिया था. इसीलिए होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहा जाता है. 

ये भी पढ़ें: Holi 2023: काशी के महाश्मशान घाट पर रंग-गुलाल नहीं बल्कि चिताओं के भस्म से खेली जाती है होली

Disclaimer:यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. 



Source link


Share to Support us

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Download Our Android Application for More Updates

X