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स्वर्ग का द्वार कहे जाने वाले जोशीमठ में क्यों प्रलय की आशंका, जानें इसकी पूरी धार्मिक कहानी

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Joshimath Religious Story: उत्तराखंड के चमोली में स्थित ज्योर्तिमठ या जोशीमठ को बद्रीनाथ भगवान की शीतकालीन गद्दी कहा जाता है. इसका कारण यह है कि सर्दियों में ब्रदीनाथ के कपाट बंद होने के बाद बद्री विशाल की मूर्ति को जोशीमठ के वासुदेव मंदिर में ही रखा जाता है.

धार्मिक मान्यता के अनुसार, हिन्दू धर्म के महानतम धर्मगुरु माने जाने वाले आदि शंकराचार्य द्वारा ही जोशीमठ में पहला ज्योर्तिमठ स्थापित किया गया था. इन दिनों जोशीमठ के जमीन धंसने के कारण यह चर्चा में है और लोगों के मन में बस एक ही सवाल है कि जोशीमठ का क्या होगा. इसका कारण यह है कि जोशीमठ केवल एक स्थान नहीं है, बल्कि यह समानत धर्म से जुड़ा धार्मिक प्रतीक है, जिससे लोगों की आस्थ और श्रद्धा जुड़ी हुई है.

जोशीमठ का धार्मिक इतिहास

जोशीमठ को आदि शंकराचार्य के कारण जाना जाता है. कहा जाता है कि 8वीं सदी में शंकराचार्य ने जोशीमठ में तपस्या की थी. शंकराचार्य ने भारत में बने चार मठों में पहले मठ की स्थापना यहीं की थी. इसके बाद से ही इस स्थान को ज्योर्तिमठ कहा जाने लगा. लेकिन जोशीमठ का धार्मिक इतिहास शंकराचार्य से भी काफी पुराना है.

धार्मिक व पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की पुकार पर नृसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया. लेकिन भगवान नृसिंह का गुस्सा शांत नहीं हुआ. उनके गुस्से को शांत करने के लिए प्रह्लाद ने मां लक्ष्मी के कहने पर फिर से जप-तप किया. प्रह्लाद के जप के प्रभाव से भगवान नृसिंह का गुस्सा शांत हुआ और इसके बाद वे शांत रूप में जोशीमठ में विराजमान हुए. यहां भगवान नृसिंह का मंदिर भी है.

जोशीमठ में इस कारण पतले हो रहे नृसिंह मूर्ति के हाथ

जोशीमठ के मंदिर में विराजित स्टफिक से बनी भगवान नृसिंह की मूर्ति को लेकर कहा जाता है कि, भगवान नृसिंह की एक बाजू साल दर साल पतली होती जा रही है. इसे लेकर कई मान्यताएं हैं.

स्कंद पुराण के केदारखंड के सनत कुमार संहिता में लिखा गया है कि, भगवान नृसिंह के मूर्ति के हाथ की ये भुजा जिस दिन टूटकर गिर जाएगी, तब नर पर्वत और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीनाथ जाने का रास्ता भी बंद हो जाएगा. इसके बाद भगवान बद्री विशाल भविष्य बद्री में पूजे जाएंगे. यह स्थान बद्रीनाथ से 19 किलोमीटर दूर तपोवन में है.

जोशीमठ को कहा जाता है स्वर्ग का द्वार

जोशीमठ से विशेष धार्मिक महत्व तो जुड़ा ही है. इससे जुड़ी पौराणिक कहानी के अनुसार, पांडवों ने जब राजपाट का त्याग कर स्वर्ग जाने का निश्चय किया तो उन्होंने जोशीमठ से ही पहाड़ों का रास्ता चुना.

बद्रीनाथ के पास पांडुकेश्वर को पांडवों का जन्म स्थान बताया जाता है. बद्रीनाथ के बाद माणा गांव पार कर एक शिखर आता है जिसे स्वर्गारोहिणी कहा जाता है. यहीं से पांडवों ने युधिष्ठिर का साथ छोड़ना शुरू किया और आखिर में एक कुत्ता ही युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग तक गया था. इसी पौराणिक कथा के कारण जोशीमठ को स्वर्ग का द्वार कहा जाता है.

हालांकि वास्तविक तौर पर जोशीमठ को स्वर्ग का द्वार इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि जोशीमठ को पार करने के बाद फूलों की घाटी पड़ती है और औली की शुरुआत हो जाती है, जिसकी सुंदरता स्वर्ग के समान है. इस कारण भी जोशीमठ को स्वर्ग का द्वार कहा जाता है.

आदि शंकराचार्य ने की थी जोशीमठ की भविष्यवाणी

भविष्य बद्री मंदिर के पास एक पत्थर है, जिस पर आदि शंकराचार्य द्वारा जोशीमठ की भविष्यवाणी लिखी हुई है. लेकिन आज तक इस भविष्यवाणी को कोई नहीं पढ़ सका.

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