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सेम सेक्स मैरिज: नैतिकता का दायरा, दुनिया की सोच और भारत सरकार का तर्क, हर सवाल का जवाब जानिए

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भारत में समलैंगिक विवाह का मेल एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है। दरअसल सेम सेक्स मैरिज यानी समलैंगिक विवाह को मान्यता देना सही है या गलत, इस पर केंद्र सरकार ने अपना रूख साफ कर दिया है। सेंटर सरकार ने समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए इसकी मान्यता देने पर हलफनामा दायर किया है। इस हलफनामे में सेंटर का कहना है कि इस तरह का विवाह भारत की परंपरा के खिलाफ है।

केंद्र का मानना ​​है कि समलैंगिक विवाह की तुलना भारतीय परिवार के पति, पत्नी और उनके पैदा हुए बच्चों की अवधारणा से नहीं की जा सकती है। उनका तर्क है कि विवाह की धारणा की शुरुआत से अपोजिट सेक्स के दो व्यक्तियों के बीच मिलन को मान लिया जाता है।

देश के अलग-अलग उच्च न्यायालय में भी समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने की मांग से संबंधित कई याचिकाएं पैरवी की हैं। इन याचिकाओं में हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विदेशी विवाह अधिनियम 1969 और विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।

अब समझ में आता है कि पूरा मामला क्या है

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सहित देश के सभी उच्च न्यायालय से समलैंगिक विवाह की मान्यता देने की मांग से जुड़ी जितनी भी शिकायतें अलग-अलग कोर्ट में थीं, उन्हें 6 जनवरी को एक साथ मिला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में अपना पक्ष रखने को कहा और अरुंधति काटजू को याचिका की तरफ से वकील नियुक्त किया।

कोर्ट ने कहा कि केंद्र की ओर से पेश हो रहे वकील और याचिका शिकायत की तरफ से नियुक्त वकील अरुंधति काटजू साथ मिलकर इस मामले की सभी अधिकार-पत्रों को स्वीकार करें, जिनके आधार पर आगे की सुनवाई की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय संविधान के तीन सदस्यीय संविधान के सुप्रीम कोर्ट जस्टिस चंद्रचूड़ ने 13 मार्च को इस पर सुनवाई की।

केंद्र सरकार का तर्क क्या है

1. हलफनामे में सेंटर ने कहा कि देश में धारा-377 के तहत सहमति से बनाए गए अप्राकृतिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है। लेकिन, याचिकाकर्ता एक ही सेक्स का होते हुए शादी की मान्यता देने का दावा नहीं कर सकता है।

2. केंद्र का कहना है कि शादी को लेकर संसद कानून का पालन करती है और व्यक्तिगत कानून लागू करती है। केंद्र का तर्क है कि भारत में सभी धर्म के व्यक्तिगत कानून हैं और इसके कई नियम हैं। हिंदू में शादी- विवाह मिताक्षरा और कानूनी पक्ष के सिद्धांत के तहत होता है। हिंदू विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है। वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ में शादी के अलग नियम से लेकर मायने हैं।

3. केंद्र का कहना है कि समलैंगिक के साथ रहने की तुलना भारतीय परिवार से नहीं की जा सकती। भारतीय परिवार में शादी का मतलब पति-पत्नी और उनकी शादी के बाद बच्चे को जन्म देते हैं।

दुनिया के किन्हीं बड़े देशों में लीगल है सेम सेक्स मैरिज

भारत में अभी भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली है। लेकिन सेम सेक्स मैरिज अमेरिका सहित दुनिया के 32 देशों में लीगल है।

इन देशों के नाम नीदरलैंड (2000), बेल्जियम (2003), कनाडा (2005), स्पेन (2005), दक्षिण अफ्रीका (2006), नार्वे (2008), स्वीडन (2009), अर्जेंटीना (2010), पुर्तगाल (2010) हैं। , आइसलैंड (2010), डेनमार्क (2012), उरुग्वे (2013), ब्राजील (2012), न्यूजीलैंड (2013), इंग्लैंड और वेल्स (2013), फ्रांस (2013), लक्जमबर्ग (2014), स्कॉटलैंड (2014), अमेरिका- 2015, आयरलैंड-2015, फ़िनलैंड-2015, ग्रीनलैंड-2015, कोलंबिया-2016, माल्टा-2017, ऑस्ट्रेलिया-2017, ऑस्ट्रिया-2017, ऑस्ट्रिया-2019 ताइवान-2019, इक्वाडोर-2019, नार्दन आयरलैंड-2019, कोस्टा रिका-2020 .

समलैंगिक विवाह को लेकर पहला कानून नीदरलैंड ने बनाया था। इस देश में साल 2000 में सेम सेक्ल मैरिज को लेकर कानून लाया गया था।

दुनिया के परिजन देशों में ऐसी शादी पर मौत की सजा दी जाती है

एक तरफ जहां 32 देशों में समलैंगिक विवाह कानूनी अपराध नहीं है, वहीं दुनिया के 10 देश ऐसे भी हैं जहां समलैंगिक संबंध या विवाह अपराध की श्रेणी में है और ऐसा करने वालों को सीधे मौत की सजा दी जाती है।

सऊदी अरब: ऐसे देशों की सूची में पहला नाम सऊदी अरब आता है। यहां समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता है। इस देश में ऐसे मामले सामने आने पर दोषियों को पहली बार जंगल में भेजा जाता है और दूसरी बार मौत की सजा दी जाती है।

अफगानिस्तान: अफगानिस्तान में भी समलैंगिक संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में आता है। इस देश में इसे बीमारी की तरह माना जाता है। यहां ऐसे मामलों में ऑनर किलिंग होना आम बात है। कानूनी तौर पर इस मामले में समलैंगिक लोगों को मौत की सजा दी जाती है।

इन दोनों देशों के अलावा यमन, ईरान, ब्रूनेई, कतर, सोमालिया, सूडान, यूनाइटेड अरब अमीरात में ही समलैंगिकता को लेकर ऐसे ही नियम हैं। पाकिस्तान में समलैंगिक संबंध बनाने पर जुर्माने या 2 साल से लेकर उम्रकैद की सजा भी हो सकती है।

भारत में समलैंगिक संबंधों के दायरे से बाहर

भारत में साल 2018 से पहले तक भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समलैंगिकता को अपराध माना गया था। आईपीसी की धारा 377 के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी पुरुष, महिला या जानवरों के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाता है तो इस अपराध की श्रेणी में रखा जाता था। ऐसे में उसे 10 साल की सजा या रिहाइश कारावास का प्रावधान रखा गया था।

लेकिन 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने ऐतिहासिक निर्णय लेने वाले समलैंगिक को प्रोफेसर से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया। फैसले के अनुसार परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंध को अपराध नहीं माना जाएगा।

ऐसी शादी में बच्चे का विकल्प पूरा कैसे होता है

वकील प्रमोद जैन ने बताया कि देश का कानून किसी भी इंसान को उसके यौन जाति के कारण बच्चा गोद लेने से नहीं रोक सकता, लेकिन एलजीबीटीक्यू के लोग बच्चे तभी गोद ले लेंगे, जब भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिल जाएगी। इसके पीछे का कारण ये है कि वर्तमान में बिना शादी के साथ रहने वाले जोड़ों को भारत में बच्चा गोद लेने की अनुमति नहीं है।

समलैंगिक विवाह पर क्या कहते हैं जानकार

समलैंगिक विवाह पर बात करते हुए वकील सोनल सिंह कहते हैं, ‘लैंगिक संबंध एक सच्चाई है। इससे हम मुंह नहीं मोड़ सकते कि समाज में ऐसा कुछ नहीं होता है। ये आज से नहीं, बल्कि जब से समाज का इतिहास है, तब से समलैंगिक संबंध रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि आज हम उस दौर में हैं कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देकर सिक्योर बनाया जा सकता है।

मेरे घर से अगर ऐसा हो जाता है तो समाज में इससे एक बहुत ही सकारात्मक संदेश जाने के साथ ही बेहतर परिणाम भी सामने आएंगे। जो लोग रूढ़िवादी सोच के होते हैं, उन्हें लगता है कि वे नियंत्रित कर सकते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि समलैंगिक संबंध को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है। वैसे वैसे मान्यता को मान्यता दे दी जाएगी, तो उनकी हिंसा कम हो जाएगी। वैसे कपल समाज में ज्यादा सुरक्षित महसूस करूंगा। काम में भी उनकी मदद होगी।

वर्तमान में समलैंगिक संबंध रखने वाले जोड़ अपने-अपने धार्मिक धार्मिक संबंधों के अनुसार शादी तो कर ले रहे हैं। लेकिन कानूनी तौर पर वे मैरिड कपल नहीं हैं। उन्हें गोद लेने का अधिकार नहीं है। वह तलाक के लिए अर्जी नहीं दे सकते। जो विवाहित जोड़े के पास अधिकार होते हैं, वे उनके पास अधिकार नहीं रखते हैं, जब तक कि विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी जाती है।

अधिकार से विमुख हो जाएंगे

अधिकारिता कार्यकर्ता ग्रीनश अय्यर ने बीबीसी की एक खबर में समलैंगिक विवाह को लेकर कहा, ‘जिस तरह के विवाह कानून में परिवर्तन अन्य कानून प्रभावित होंगे। ठीक उसी तरह विवाह का अधिकार नहीं समलैंगिकों जोड़ों के कई और अधिकार भी प्रभावित करते हैं।

ऐसे समझ की कानूनी तौर पर शादी नहीं होने के कारण वो कपल इससे जुड़े अन्य अधिकारों से भी विनीत हो जाता है। जैसे परिवार के किसी सदस्य को किडनी दी जाती है। अगर समलैंगिक कपल में किसी की किडनी की पड़ी हुई है तो दूसरा व्यक्ति सक्षम और समझौता होने के बाद भी किडनी नहीं दे सकता क्योंकि वो कानूनी रूप से विवाहित नहीं हैं।

ग्रीनश अय्यर कहते हैं कि इसी तरह वह उत्तराधिकार के अधिकार, मेडिक्लेम, बीमा और अन्य दस्तावेजों में भी अपने साथी का नाम नहीं दे सकते। जबकि मुझे लगता है कि किसी व्यक्ति की साझेदारी का पूरा अधिकार होना चाहिए। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिलने पर एक कपल अपने रिश्ते में प्यार, समर्पण, इच्छा होने पर भी एक-दूसरे को परिवार नहीं बना सकता।

भारत में 3% लोग आप को गे या लेज़्बियन मानते हैं

साल 2021 में LGBT+ Pride 2021 ग्लोबल सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक भारत की 3 प्रतिशत आबादी को खुद को या लेजेरियन मान लिया जाता है। वहीं 9 प्रतिशत आबादी को आप बाय-सेक्सुअल मानते हैं और 2 प्रतिशत लोग खुद को एसेक्सुअल मानते हैं।

इंग्लैंड के अखबार डेली मेल की एक खबर के मुताबिक पिछले कुछ सालों में इंग्लैंड में स्ट्रेट लोगों की संख्या में कमी आई है। यहां स्ट्रेट एडल्ट की संख्या में 1% से ज्यादा की गिरावट पाई गई। इसी खबर के मुताबिक इंग्लैंड में अब पहले से कहीं ज्यादा लोग अपनी पहचान समलैंगिक, गे और बाई सेक्सुअल लोगों के तौर पर कर रहे हैं। यहां 16 से 24 साल के वर्ग में अब हर बारहवें व्यस्क एलजीबी ग्रुप का हिस्सा है।



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