Sanskar: हिंदू धर्म में सभी 16 संस्कार जरूरी माने गए हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तरह से एक सैनिक को युद्ध में जाने से पूर्व शस्त्र के साथ-साथ कवच की भी आवश्यकता होती है, वैसे ही हमारे जीवन के लिए संस्कार हमारा कवच होता है. एक मनुष्य को जन्म से मृत्यु तक सोलह संस्कार जरुर करना चाहिए.
इन्हीं 16 संस्कारों में से एक है सीमन्तोन्नयन संस्कार. आइए जानते हैं क्या है सीमन्तोन्नयन संस्कार, इसका महत्व और एक गर्भवती महिला के लिए ये क्यों जरुरी है.
सीमन्तोन्नयन संस्कार क्या है ? (What is Simantonnayana Sanskar)
सीमन्तोन्नयन संस्कार सोलह संस्कार में तीसरे स्थान पर आता है. इस गर्भास्था के छठे या आठवे महीने में किया जाता है. सीमन्तोन्नयन संस्कार गर्भस्थ शिशु और उसकी माता की रक्षा करने के उद्देश्य से किया जाता है, क्योंकि 6वें और 8वें महीने में गर्भपात या प्री-मेच्योर डिलीवरी होने की सर्वाधिक संभावनाएं होती है, इसे रोकने के लिए ये संस्कार किया जाता है.
ऋग्वेद में सीमन्तोन्नयन संस्कार
येनादिते सीमानं नयति प्रजापतिर्महते सौभगाय!
तेनाहमस्यै सीमानं नयामि प्रजामस्यै जरदष्टि कृणोमी!!
अर्थात – जिस तरह से ब्रह्मा ने देवमाता अदिति का सीमन्तोन्नयन किया था, ठीक उसी तरह से गर्भिणी का सीमन्तोन्नयन कर इसकी संतान को मैं दीर्घजीवी करता हूं.
सीमन्तोन्नयन संस्कार का महत्व (Simantonnayana Sanskar Significance)
चार माह के बाद गर्भ में पल रहा शिशु का तेजी से विकास होता है. इसके बाद माता के मन में नई-नई इच्छाएं पैदा होती हैं. माता के स्वभाव में भी बदलाव आ जाता है. ऐसे में शिशु के मानसिक विकास के लिए उन इच्छाओं का पूरा करना और माता को मानसिक बल प्रदान करने के लिए सीमन्तोन्नयन संस्कार किया जाता है. छठे या आठवे महीने में इस संस्कार को कर लेना चाहिए, क्योंकि इस समय शिशु सुनने में सक्षम होता है.
सीमन्तोन्नयन संस्कार के लाभ (Simantonnayana Sanskar Benefit)
सीमन्तोन्नयन संस्कारों आधुनिक तौर पर आज के बेबी शॉवर का ही रूप है. इसमें मंत्रों से शिशु को चैतन्य किया जाता है. इसके जरिए गर्भ में पल रहे बालक को नवग्रह मंत्रों से भी संस्कारित किया जाता है. मान्यता है कि इस संस्कार से शिशु को ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त होती है. इस संस्कार से शिशु की ग्रहण शक्ति का विकास होता है.
सीमन्तोन्नयन संस्कार की विधि (Simantonnayana Sanskar Vidhi)
सीमन्तोन्नयन संस्कार को पुजारियों के सानिध्य में किया जाना अच्छा होता है. इस दौरान पति ॐ भूर्विनयामि मंत्र का जाप करते हुए गूलर की टहनी से पत्नी की मांग निकालता है. उसके बाद ऊपर बताए गए ऋग्वेद के मंत्र को बोला जाता है. फिर गर्भवती स्त्री घर की बुजुर्ग महिलाओं का आशीर्वाद लेती हैं. कहते हैं कि इस संस्कार के अंत में महिला को घी मिलाकर खिचड़ी खानी चाहिए. इससे बच्चे के मानसिक विकास में मदद मिलती है.
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