<पी शैली ="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;">कहते हैं कि राजनीति फ़र्श से अर्श पर ले जाती है, लेकिन ज़रा-सी चूक से इसका उलटा असर दिखाने में भी देर नहीं लगती है। राहुल गांधी के जुबान से निकले महज़ ने सबसे पहले सांसद से एक शब्द छीन लिया और अब सरकारी बंगले से भी हाथ मिला कर चलेंगे। राजनीति में राहुल आज कहां हैं? सिर्फ इन दो कारणों से राहुल गांधी राजनीति के हाशिये पर चले गए थे या फिर वे सियासी बिसात की कोई नई सख्त कोशिश में थे? ये सवाल इसलिए कि मानहानी केस में सरकेट कोर्ट के आरोप तय होने के बाद भी उन्होंने उस फैसले को अभी तक ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दी है। हालांकि उनके पास 30 दिन यानी 22 अप्रैल तक का समय है और ये ही तारीख भी है, जब उन्हें सरकारी बंगला खाली करना होगा, जिससे वे पिछले 19 दिनों से ब्लिट्ज से रह रहे हैं।
दरअसल राहुल का पूरा मामला एक राजनीतिक भाषण से जिम्मेदार है, इसलिए अदालत ने तो अपने सामने आने वाले तथ्यों के आधार पर अपना फैसला सुना दिया, लेकिन अब ये कानूनी सरकार बनाम विभिन्न के बीच एक बड़ी राजनीतिक लड़ाई में भी कटौती हो रही है। 12 नवंबर की आधिकारिक वेबसाइट पर वायनाड सीट को अब खाली सीट घोषित कर दिया गया है। गेंद अब चुनाव आयोग के पाले में चली गई है, जिसे इस सीट पर चुनाव के उपचुनाव का फैसला लेना है। शर्त के अनुसार दस का कार्यकाल पूरा होने में अगर एक साल या उससे ज्यादा का सवाल बचा है, तो खाली हुई सीट पर चुनाव को लेकर अनिवार्य बाध्यता है।
मौजूदा 16 मई का कार्यकाल मई में खत्म हो जाएगा। कानूनी सूचनाएं कहती हैं कि चुनाव आयोग अब अध्यक्ष है कि वह कर्नाटक विधानसभा चुनावों की अधिसूचना जारी करने के साथ ही वायनाड लोकसभा सीटों पर भी उपचुनाव की घोषणा करें या न करें। कर्नाटक में मई में चुनाव होने हैं और आयोग को अगले कुछ दिनों में तारीखों की घोषणा करनी है। अब तक की स्क्रैचिंग यह है कि यदि किसी भी कारण से कोई भी लोकसभा सीट खाली होती है, और यदि किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं, तो उसके साथ ही उस रिक्त सीट पर भी चुनाव आकलन किया जाता है।
लिहाज़ा, कानूनी तौर पर राहुल गांधी को उच्च न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली या न मिले, आयोग आयोग का कोई वास्ता नहीं है और न ही उसकी आगे ऐसी कोई बाध्यता है। जानकारी में कहा गया है कि अगर वायनाड सीट पर चुनाव की घोषणा नहीं होती है, तो समझ लें कि कहीं कुछ ऐसा फंस गया है जो अभी दिखाई नहीं दे रहा है।
इसे समझने के लिए पिछले चार दिनों में ब्रॉडबैंड लिंक्डर्स सहित कुछ मिनिस्टर के दिए गए जमा पर ध्यान देना होगा। वे सभी इस पर जोर दे रहे हैं कि कांग्रेस इस कानूनी लड़ाई को लेकर आंदोलन पर लाकर देश को दावा क्यों कर रही है और राहुल गांधी इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती क्यों नहीं दे रहे हैं। अब सवाल उठता है कि क्या राहुल उच्च न्यायालय में फैसले को चुनौती देने में देरी कर रहे हैं और इसके पीछे कांग्रेस की कोई सियासी रणनीति क्या है?
पार्टी से जुड़े सूत्र का दावा है कि कांग्रेस इस इंतजार में है कि आयोग पहले वायनाड का उप चुनाव घोषित कर दे। उसके बाद वह कानूनी रास्ते पर आगे बढ़ेगा। पार्टी के कानूनी दिग्गजों का कहना है कि कोर्ट कोर्ट के फैसले में ऐसे कई खामियां हैं, जिसके आधार पर राहुल गांधी को उच्च न्यायालय से राहत मिलना तय है, लेकिन सजा पर मिलने के बावजूद उन्हें वायनाड के चुनाव उप चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी ऐसा होगा। वहां से उन्हें कोई राहत नहीं मिली या नहीं मिली, लेकिन कांग्रेस की रणनीति यही है कि तब तक राहुल का मसला मीडिया में छाया रहे।देखना ये है कि सूरत कोर्ट का फैसला राहुल गांधी के लिए "जैकपॉट " सिद्ध होता है या फिर उन्हें फ़र्ज़ पर ही रखता है?
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