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ये कीट रोग लग गए तो कपास मुनाफे का नहीं… घाटे की फसल होगी, किसान भाई फटाफट ऐसे करें बचाव

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Cotton Production In India: बाढ़, बारिश और सूखा किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. किसानों की लाखों रुपये की फसल खरीफ सीजन में बर्बाद हो गई थी. इसके अलावा कीट और रोग भी फसलों की बर्बादी का बड़ा कारण बनते हैं. आज कपास में लगने वाले ऐसे ही कीट रोगों के बारे में बताने जा रहे हैं. जिनकी चपेट में फसल आने पर गंभीर नुकसान हो जाता है. फसल की उत्पादकता घटकर बेहद कम रह जाती है. 

हरा मच्छर कीट रोग

इसमें कीट फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं. कीट पत्तियों की निचली सतह पर बैठक शिराओं का रस चूसने लगती हैं. इससे पत्तियां कमजोर पड़ने लगती हैं. पत्ती धीरे-धीरे पीली पड़कर सूखकर गिर जाती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इस रोग से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल या मोनोक्रोटोफॉस 36 एसएल का छिड़काव किया जा सकता है. 

सफ़ेद मक्खी कीट

हरा मच्छर कीट रोग की तरह यह रोग भी पत्तियों की निचली सतह से शुरू होता है. पत्तियों पर कीट बैठकर रस चूसना शुरू कर देते हैं. इस रोग में कीट पत्तियों पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है. इसमें पत्ती मुड़ने लगती हैं. इसी कारण इसे पत्ता मरोड़ रोग भी कहा जाता है. बाद में पत्तियां सूखकर नीचे गिर जाती हैं. हालांकि कुछ प्रजातियों पर यह रोग नहीं लग पाता है. अन्य किस्म के पौधों पर रोग से बचाव के लिए ट्राइजोफॉस 40 ईसी या मिथाइल डिमेटान 25 ईसी का घोल बनाकर छिड़क दें. 

चितकबरी सुंडी कीट

यह कीट फूलों की आगे बढ़ने की प्रक्रिया के दौरान हमला करते हैं. जब फूल टिंडे बनने लगते हैं, तब यह कीट हमला करता है. इस दौरान पौधे का ऊपरी भाग सूखने लगता है और टिंडे की पंखुड़ी पीली पड़ जाती है. टिंडे के अंदर का कपास खराब होने लगता है. इस रोग के होने पर कपास की उत्पादकता बेहद तेजी से घटती है. रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 एसएल क्लोरपायरीफास 20 ईसी, मेलाथियान 50 ईसी में से किसी एक दवा का छिड़काव कर दें. 

तेल कीट रोग

यह काले रंग के छोटे आकार के कीट होते हैं. इसमें कीट पत्तियों पर हमला करता है. फसल को बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल. या थायोमिथाक्जाम 25 डब्ल्यूजी दवा का छिड़काव करें. 

तम्बाकू लट कीट रोग

यह कीट आकार में लंबा होता है. यह पत्तियों को खाकर उनमें छेद कर देता है. देखने में यह जालीनुमा लगती है. बाद में पत्ती सूखकर नीचे गिर जाती है. इससे बचाव के लिए भी दवाएं उपलब्ध हैं. फलूबैन्डीयामाइड 480 एस, थायोडिकार्ब 75 एसपी और इमामेक्टीन बेंजोएट 5 एसजी दवा का छिड़काव कर देना चाहिए. 

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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