Vidhyarambha Sanskar: धर्म ग्रंथों के अनुसार संस्कारों और शिक्षा से व्यक्ति का जीवन संवर जाता है. जब बच्चा शिक्षा ग्रहण करने के योग्य हो जाता है तब विद्यारंभ संस्कार किया जाता है. सोलह संस्कारों में नौवां स्थान विद्यारंभ संस्कार का होता है.
विद्यारंभ संस्कार के जरिए बालक को शिक्षा और ज्ञान के प्रति जागरुक किया जाता है. प्राचीन काल में बच्चों को विद्यारंभ संस्कार के लिए गुरुकुल भेजा जाता था. आइए जानते हैं विद्यारंभ संस्कार कब करें, इसका महत्व और विधि.
विद्यारंभ संस्कार कब करें (Vidhyarambha Sanskar Time)
वेदों और शास्त्रों में विद्यारंभ संस्कार के लिए सही आयु पांच साल निर्धारित की गयी है, इस उम्र तक बच्चा अक्षर का ज्ञान भली भांति समझ पाता है. इससे पहले वह सामान्य शिष्टाचार अपने घर में रहकर अपने परिजनों तथा माता-पिता से सीखता है. जब उसमे शिक्षा ग्रहण करने की शक्ति आ जाती है तब उसे गुरु को सौंप दिया जाता है ताकि उसे समस्त विषयों का ज्ञान मिल सके.
विद्यारंभ संस्कार महत्व (Vidhyarambha Sanskar Significance)
विद्यारंभ संस्कार के माध्यम से बच्चे की रुचियों को ज्ञान और विद्या की ओर अग्रसर किया जाता है. साथ ही उनमें सामाजिक और नैतिक गुण आएं इसके लिए भी प्रार्थना की जाती है. इसमें बच्चे को कलम, दावत और पट्टी दी जाती है और उसे भाषा का लिखित ज्ञान करवाया जाता है.
विदयारंभ संस्कार की विधि (Vidhyarambha Sanskar Vidhi)
विद्यारंभ संस्कार के दिन बच्चे के हाथ में अक्षत, फूल, रोली दें और मंत्रों का जाप करते हुए गणपति और देवी सरस्वती की मूर्ति पर पूजा सामग्री अर्पित करें. इस दिन भगवान की तरस्वीर के पास पट्टी, दवात और लेखनी, स्लेट, खड़िया रखा जाता है, साथ ही गुरू के पूजन के लिए प्रतीक के रूप में नारियल रखते हैं. बच्चे के जरिए इन सभी का विधि अनुसार पूजन किया जाता है. विद्यारंभ संस्कार का अंतिम चरण है हवन. हवन सामग्री में कुछ मिष्ठान मिलाकर पांच बार मंत्रोच्चार के साथ बच्चे से 5 बार आहूति डलवाएं.
विद्यारंभ संस्कार के मंत्र (Vidhyarambha Sanskar Mnatra)
गणपति पूजा मंत्र – ॐ गणानां त्वा गणपति हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति हवामहे, वसोमम। आहमजानि गभर्धमात्वमजासि गभर्धम्। ॐ गणपतये नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
सरस्वती पूजा मंत्र – ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिवार्जिनीवती। यज्ञं वष्टुधियावसुः।
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