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नज़ीर अकबराबादी: हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार…तब देख बहारें होली की

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Holi 2023 Special, Nazeer Akbarabadi: तब देख बहारेंं होली की जब फागुन रंग झमकते हो, तब देख बहारें होली की और दफ़ के शोर खदकते हो, तब देख बहारें होली की परियो के रंग दमकते हो, तब देख बहारें होली की… ये नज्म नज़ीर अकबराबादी के हैं, जो होली के रंग, तरंग और उमंग को पेश करती हैं.

नज़ीर अकबराबादी का असली नाम वली मुहम्मद और उपनाम ‘नज़ीर’ था. अपने नाम के साथ उन्होंने ‘अकबराबादी’ जोड़ा. कहा जाता है कि उनका जन्म 1735 में बसंत पंचमी के दिन हुआ था और इसलिए इस दिन लोग उनके मजार पर फूल चढ़ाने जाते हैं. नज़ीर अकबराबादी धर्म निरपेक्षता की मिसाल थे. इसलिए तो जब उन्होंने अंतिम सांस ली तो उनके जनाजे में हिंदू-मुसलमान सभी शामिल हुए. उनके मकान में ही उन्हें दफनाया गया. शिया और सुन्नियों ने अपने-अपने तरीके से नमाज पढ़ी और जनाजे की चादर हिंदू ले गए.

08 मार्च को होली का पर्व है और इसकी धूम हर जगह दिखने लगी है. ब्रज के इलाके, मंदिर, गलियां होली के जिन गीतों पर झूमती और नाचती है, क्या आप जानते हैं कि उन गीतों को किसने और कब बनाया. आपको जानकर हैरानी होगी कि कृष्ण और राधा की लीला और होली के रंगों से भरे ये गीत एक मुसलमान शायर की जुबान से निकली है, जिनका नाम है नज़ीर अकबराबादी.

सिर्फ नज़ीर अकबराबादी ही नहीं बल्कि भारत में अमीर खुसरो, मलिक मुहम्मद जायसी और रसखान जैसे कई शायर हुए जो हिंदू और मुसलमानों की साझी विरासत यानी गंगा-जमुनी संस्कृति की मिसाल हैं. इन्हीं में एक है नज़ीर अकबराबादी. उर्दू अदब के एक बेहतरीन शायर में नज़ीर अकबराबादी का नाम लिया जाता है. इन्हें सांप्रदायित सौहार्द का उदाहरण माना जाता है. नज़ीर अकबराबादी को आम लोगों का कवि कहा जाता है. इनकी शायरी, गजलें और रचनाएं आम जीवन, ऋतु, त्योहार, फलों और सब्जियों आदि पर लिखी गईं.

नज़ीर अकबराबादी को उर्दू नज्मों का जनक कहा जाता है. उनके सारे साहित्य में हिंदुस्तानी संस्कृति की बोली और भाव नजर आते हैं. उन्होंने अपने नज्मों से होली समेत हिंदू धर्म और इसके रीति-रिवाजों पर बहुत ही बारीकी से अपनी कलम चलाई. नज़ीर ने अपने पसंदीदा त्योहार होली पर भी कई शीर्षक और रंग को लेकर नज्में लिखीं. उनके शायराने पर होली का रंग खूब चढ़ता है, जिसमें वे झूमकर लिखते हैं..

तब देख बहारें होली की..जब फ़ागुन रंग झमकते हों तब देख बहारेंं होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारेंं होली की
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की
ख़म शीशए जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की॥1॥

हो नाच रंगीली परियों का …

हो नाच रंगीली परियों का बैठे हों गुलरू रंग भरे
कुछ भीगी तानें होली की कुछ नाज़ो अदा के ढंग भरे
दिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग भरे
कुछ तबले खड़के रंग भरे कुछ ऐश के दम मुंहचुग भरे
कुछ घुंघरू ताल झनकते हों तब देख बहारें होली की॥2॥

सामान जहां तक होता है इस इश्रत के मतलूबों का
वह सब सामान मुहैया हो और बाग़ खिला हो खू़बों का
हर आन शराबें ढलती हों और ठठ हो रंग के डूबों का
इस ऐश मजे़ के आलम में एक ग़ोल खड़ा महबूबों का
कपड़ों पर रंग छिड़कते हों तब देख बहारें होली की॥3॥

गुलज़ार खिले हों परियों के…

गुलज़ार खिले हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो
कपड़ों पर रंग के छींटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो
मुंह लाल, गुलाबी आंखें हो और हाथों में पिचकारी हो
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की॥4॥

जब आती है होली की बहार…

हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार
जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार।।

एक तरफ से रंग पड़ता, इक तरफ उड़ता गुलाल
जिन्दगी की लज्जतें लाती हैं, होली की बहार।।

जाफरानी सजके चीरा आ मेरे शाकी शिताब
मुझको तुम बिन यार तरसाती है होली की बहार।।

तू बगल में हो जो प्यारे…

तू बगल में हो जो प्यारे, रंग में भीगा हुआ
तब तो मुझको यार खुश आती है होली की बहार।।

और हो जो दूर या कुछ खफा हो हमसे मियां
तो काफिर हो जिसे भाती है होली की बहार।।

नौ बहारों से तू होली खेलले इस दम नजीर
फिर बरस दिन के उपर है होली की बहार।।

जब आई होली रंग भरी…

जब आई होली रंग भरी, सो नाज़ो अदा से मटकमटक
और घूंघट के पट खोल दिये, वह रूप दिखाया चमक-चमक
कुछ मुखड़ा करता दमक-दमक कुछ अबरन करता झलक-झलक
जब पांव रखा खु़शवक़्ती से तब पायल बाजी झनक-झनक
कुछ उछलें, सैनें नाज़ भरें, कुछ कूदें आहें थिरक-थिरक।।

यह रूप दिखाकर होली के, जब नैन रसीले टुक मटके

यह रूप दिखाकर होली के, जब नैन रसीले टुक मटके
मंगवाये थाल गुलालों के, भर डाले रंगों से मटके
फिर स्वांग बहुत तैयार हुए, और ठाठ खु़शी के झुरमुटके
गुल शोर हुए ख़ुश हाली के, और नाचने गाने के खटके
मरदंगें बाजी, ताल बजे, कुछ खनक-खनक कुछ धनक-धनक।।

 

जब खेली होली नंद ललन

जब खेली होली नंद ललन हंस हंस नंदगाँव बसैयन में
नर नारी को आनन्द हुए खुशवक्ती छोरी छैयन में
कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में
खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चैपय्यन में
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में

जब ठहरी लपधप होरी की और चलने लगी पिचकारी भी
कुछ सुर्खी रंग गुलालों की, कुछ केसर की जरकारी भी
होरी खेलें हंस हंस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी
यह भीगी सर से पांव तलक और भीगे किशन मुरारी भी
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में

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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.



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