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देश के पहले IAS का ऐसे हुआ था सेलेक्शन, परीक्षा देने भी इस देश में जाना पड़ता था

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First IAS: आप जानते होंगे कि हमारे देश के लिए पहला ओलंपिक पदक किसने जीता था या हमारे देश के लिए पहला क्रिकेट विश्व कप जीतने वाली टीम का कप्तान कौन था. आप देश के पहले राष्ट्रपति या पहले प्रधानमंत्री का नाम भी जानते होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिविल सेवा परीक्षा पास करने वाले पहले भारतीय कौन थे? वह नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर के दूसरे बड़े भाई सत्येन्द्रनाथ टैगोर थे. भारत को आजादी मिलने से कई साल पहले ही सत्येन्द्रनाथ टैगोर ने सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली थी. अंग्रेज़ देश पर शासन कर रहे थे और भारतीयों को आम तौर पर कई वर्षों तक सिविल सेवा परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं थी, लेकिन टैगोर ने अपने स्किल और नॉलेज के दम पर उस परीक्षा को पास किया था. बाद में उसे एक खास नाम भी दिया गया है.

क्या कहते हैं इतिहास के पन्ने?

सीधे मुद्दें पर आए उससे पहले थोड़ा इतिहास पर नजर डालते हैं. 17वीं शताब्दी में अंग्रेज़ व्यापार के लिए भारत आए और यहां पर शासन करने लगे. तब उनकी सरकार हुआ करती थी और सब कुछ उनके नियंत्रण में था. कई वर्षों तक भारतीयों को ब्रिटिश सरकार के शीर्ष पदों पर काम करने की अनुमति नहीं थी. 1832 में उन्होंने पहली बार भारतीयों को मुंसिफ़ और सदर अमीन पदों पर चयनित होने की अनुमति दी. बाद में उन्हें डिप्टी मजिस्ट्रेट या कलेक्टर के पद पर भी नियुक्त किया जाने लगा. लेकिन 1860 के दशक तक ऐसा नहीं था कि भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में बैठ सकते थे.

पढ़ाई के लिए जाना पड़ता था लंदन

1861 में भारतीय सिविल सेवा अधिनियम पेश किया गया, और भारतीयों को परीक्षा में भाग लेने की अनुमति देते हुए भारतीय सिविल सेवा की स्थापना की गई. हालांकि, भारतीयों के लिए यह आसान नहीं था. प्रतिभागियों को परीक्षा में शामिल होने के लिए लंदन जाना पड़ता था और पाठ्यक्रम बहुत बड़ा था और इसमें ग्रीक और लैटिन भाषाएँ शामिल थीं. अधिकतम आयु सीमा केवल 23 वर्ष थी जिसे बाद में घटाकर 19 वर्ष कर दिया गया.

1863 में हुआ था पहली बार भारतीय का चयन

जून 1842 में जन्में सत्येन्द्रनाथ टैगोर बचपन से ही मेधावी छात्र थे. फर्स्ट डिविजन प्राप्त करने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में चयनित होकर उन्होंने अपनी योग्यता साबित की. वह कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में बैठने वाले पहले बैच का हिस्सा थे. भारतीय सिविल सेवा अधिनियम पारित होने के बाद, टैगोर ने अपने मित्र मोनोमोहन घोष के साथ मिलकर इसका प्रयास करने का निर्णय लिया. दोनों ने लंदन जाकर परीक्षा की तैयारी की और पेपर दिए.

घोष परीक्षा में सफल नहीं हो सके, लेकिन टैगोर का 1863 में चयन हो गया. उन्होंने अपना प्रशिक्षण पूरा किया और 1864 में भारत वापस आ गए. उन्हें सबसे पहले बॉम्बे प्रेसीडेंसी में नियुक्ति मिली और बाद में उन्हें अहमदाबाद में सहायक कलेक्टर/मजिस्ट्रेट बनाया गया. उन्होंने 30 वर्षों तक सेवा की और 1896 में सतारा, महाराष्ट्र से न्यायाधीश के रूप में रिटायर हो गए.

अगर हम भारत में सिविल सर्विसेज की परीक्षा कराए जाने की बात करें तो उसकी शुरुआत 1922 में हुई थी. तब उसका नाम इंडियन इंपेरियल सर्विसेज हुआ करता था. बाद में बदलकर सिविल सर्विसेज कर दिया गया. 

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