लोकसभा चुनाव 2024 तक बीजेपी की कमान कौन संभालेगा? इसकी एशिया लेकर चर्चा शुरू हो गई है। वर्तमान में जेपी नड्डा का कार्यकाल 20 जनवरी को समाप्त हो रहा है। ने नए अध्यक्ष के चुनाव और अन्य नीतिगत निर्णय लेने के लिए 16 और 17 जनवरी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की फैलाई है।
सूत्रों के अनुसार 17 जनवरी को पार्टी के नए अध्यक्ष के नाम पर मुहर लग सकती है। जेपी नड्डा को फिर से कार्य मुलाकात की भी चर्चा है। हालांकि, 2014 के बाद जिस तरह से नियुक्तियों को लेकर चौंकाने वाले फैसले हुए, उन्हें देखते हुए कुछ भी फाइनल नहीं माना जा रहा है।
जेपी नड्डा या कोई और… कम
अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद जेपी नड्डा को बीजेपी की कमान सौंपी गई थी। बीजेपी सूत्रों माने तो हिमाचल छोड़ नड्डा का मामला अब तक बेहतर रहा है। ऐसे में उन लोगों को आज्ञा देना माना जा रहा है।
हालांकि, सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि नड्डा मोदी कैबिनेट में फिर से शामिल हो सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी को 2024 के लिए नया अध्यक्ष मिल सकता है। इनमें से धर्मेंद्र प्रधान और भूपेंद्र यादव का नाम सबसे आगे है।
बीजेपी में कैसे चुनाव जीतते हैं अध्यक्ष, 2 वीपी
- 1980 से लेकर अब बीजेपी में अध्यक्ष के चुनाव से ही होता है। हाईकमान में संपत्तियां बनने के बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इसका लेखा-जोखा होता है। बनाया है। निर्वाचक मंडल के सदस्य अध्यक्ष ही अधिकार रखते हैं।
अध्यक्ष का चुनाव लड़ना आसान नहीं, 4 वजहें…
15 साल से पार्टी में सक्रिय हो- 42 साल के बीजेपी अध्यक्ष बनने की पहली शर्त है कि चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति 15 साल तक पार्टी के सक्रिय सदस्य हो। साथ ही 4 अवधियों तक सक्रिय सदस्य हो रहे हैं।
निर्वाचक मंडल के 20 सदस्य प्रस्तावक- अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के लिए शर्त दूसरी है कि उम्मीदवार के समर्थन में निर्वाचक मंडल के करीब 20 सदस्य प्रस्वात रखें। इन प्रस्ताव पर अध्यक्ष के उम्मीदवार का हस्ताक्षर होता है।
5 राज्यों से प्रस्ताव आना जरूरी है- अध्यक्ष चुनाव लड़ने के लिए सबसे बड़े ब्लॉकेज ग्रुप हैं। उम्मीदवार को उन पांच राज्यों से प्रस्ताव लाना होगा, जहां राष्ट्रीय परिषद का चुनाव हो सकता है। यानी 5 राज्यों का संगठन का समर्थन जरूरी है।
संघ का करीबी होना भी जरूरी है- संघ भले ही बीजेपी के इलेक्ट्रॉनिक वोट में हस्तक्षेप नहीं करने का दावा करता है, लेकिन राष्ट्रपति के चुनाव में संघ की छाप हमेशा दिखती है। 42 साल से बीजेपी में 11 अध्यक्ष बने हैं, जिनमें से 7 संघ के पसंदीदा बने हुए हैं। इनमें कृष्ण लाल आडवाणी, मुरली जोशी, कुशाभाऊ ठाकरे, नितिन गडकरी और जेपी नड्डा का नाम शामिल है।
जब राष्ट्रपति का चुनाव घोषणा में आया…< br />साल 2012 और अक्टूबर का महीना था। बीजेपी के अध्यक्ष नितिन गडकरी को लगातार दूसरे कार्यकाल का तर्पण माना जा रहा था। गडकरी 2009 में बीजेपी की हार के बाद अध्यक्ष बने थे।
लेकिन इसी बीच बीजेपी के कद्दावर नेता राम जेठमलानी ने गडकरी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जेठमलानी ने कहा कि अगर गडकरी चुनाव लड़ते हैं तो मैं भी उनके खिलाफ चुनाव लड़ूंगा।
पार्टी में शुरू इस घमासान को खत्म करने के लिए संघ ने गडकरी से नाम वापस लेने के लिए कहा। इसके बाद दशकों तक सिंह को बीजेपी का बागडोर नियुक्त किया गया।
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल कब तक?
बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल 3 साल के लिए होता है . पहले एक अध्यक्ष लगातार दो बार पद पर नहीं रह सकते थे, लेकिन 2012 में इसे बदला गया। अब लगातार 2 बार कोई भी व्यक्ति अध्यक्ष पद पर रह सकता है। बनने के बाद बीजेपी ने दक्षिण के राज्यों में विस्तार की रणनीति बनाई। इस रणनीति के तहत लक्ष्यों (अब गठबंधन) के बंगारू लक्ष्मण को 2000 में पार्टी की कमान सौंपी गई। लेकिन उनका एक वीडियो वायरल हो गया, जिसके बाद उन्हें 2001 में पद छोड़ना पड़ा।
वहीं इस बीच कार्यकाल में लाल लाल आडवाणी को भी पद छोड़ना पड़ा। आडवाणी 2004 में बीजेपी की तीसरी बार कमान संभाली, लेकिन 2005 में जिन्ना के मजार पर चादर चढ़ाने की वजह से काफी विवाद हुआ। आडवाणी ने इसके बाद इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह डेकारा सिंह ब्रोकर के अध्यक्ष बनाए गए.
आडवाणी सबसे ज्यादा, बंगारू सबसे कम दिनों तक रहे
बीजेपी में सबसे ज्यादा दिनों तक लालकृष्ण आडवाणी अध्यक्ष पद पर रहे। वे 3 टर्म में 11 साल तक के राष्ट्रपति का कार्यभार संभालते हैं। बंगारू लक्ष्मण सबसे कम दिनों तक अध्यक्ष की कुरसी पर रहे हैं। बंगारू करीब 12 महीने तक राष्ट्रपति रह पाए थे।
जन संघ से गलती नहीं दोहराना चाहता हूं।
बीजेपी में अध्यक्ष को लेकर चुनाव क्यों आयोग नहीं बनते? मैंने यह सवाल जनसंघ और बीजेपी को करीब से कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार मनोज शर्मा से पूछा. उनका जवाब था- जनसंघ के जामने में राष्ट्रपति का चुनाव घोषित किया गया था, लेकिन चुनाव के दौरान कई बड़े विवाद हुए, जिससे संघ ने सीख ली और अब चुनाव आयोग नहीं बनते हैं।
1954 मौलीचंद्र शर्मा का विरोध- श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बाद मौलीचंद्र शर्मा जनसंघ के अध्यक्ष बनाए गए। शर्मा कांग्रेस के नेता रह गए थे। ऐसे में उस वक्त जनसंघ के कैमरे ने अपना विरोध शुरू कर दिया। विरोध को देखते हुए शर्मा को कुरसी छोड़नी पड़ी थी। . अटल और मधोक के बीच पुरानी स्वीकार्यता को देखते हुए कनेक्शन जुड़ गया। मधोक अटल बिहारी को असल कांग्रेसी बता चुके थे।
ऐसे में उस वक्त दिल्ली जनसंघ के अध्यक्ष रहे लालकृष्ण आडवाणी को जनसंघ की कमान सौंपी गई थी। आडवाणी ने बाद में मधोक को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निकाल दिया।
अध्यक्ष चुनाव को लेकर सवाल उठा लिया है कांग्रेस
हाल ही में अपना नया अध्यक्ष निर्वाचित किया के बाद कांग्रेस ने बीजेपी अध्यक्ष के चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाया था। मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि बीजेपी अध्यक्ष का चुनाव कब करता है, इसके बारे में किसी को पता नहीं चलता है। पहले बीजेपी खुद के लोकतंत्र में दिखता है।