G20 Summit: भारत में आयोजित हुए जी20 शिखर सम्मेलन में सबसे बड़ी कामयाबी ‘इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर’ (IMEC) रहा है. रेल और बंदरगाह के जरिए ये कॉरिडोर भारत को मिडिल ईस्ट और मिडिल ईस्ट को यूरोप एवं अमेरिका से जोड़ने का काम करेगा. हालांकि, बहुत ही कम लोग इस बात को जानते हैं कि IMEC को तैयार करने और इस पर सहमति बनवाने में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का बड़ा हाथ रहा है.
IMEC को चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के विकल्प के तौर पर लाया गया है. बीआरआई के जरिए चीन खुद को मिडिल ईस्ट से लेकर यूरोप तक जोड़ना चाहता है. वह समुद्री रास्तों के जरिए अफ्रीका तक भी पहुंच बना रहा है. चीन सड़क, रेल और समुद्री मार्गों के जरिए एक ऐसा नेटवर्क बना रहा था, जिससे पूरी दुनिया तक उसकी पहुंच हो जाए. हालांकि, चीन के ऐसा करने से पहले ही अजित डोभाल ने IMEC के तौर पर ऐसा चक्रव्यूह रचा कि चीन उसमें फंस गया.
दो साल से IMEC पर चल रहा था काम
जी20 में पेश किया गया IMEC अचानक से लाया गया प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि इस पर दो साल से काम चल रहा था. दो साल पहले अक्टूबर 2021 में एक फोरम का गठन किया गया, जिसका नाम I2U2 था. इसमें भारत, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और अमेरिका शामिल थे. बाद में सऊदी अरब भी इसका हिस्सा बन गया. इस मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को तैयार करने के पीछे एनएसए अजीत डोभाल का हाथ है.
अजीत डोभाल पिछले कई महीनों से IMEC में शामिल देशों के समकक्षों के साथ बातचीत कर रहे थे. उन्होंने सबसे ज्यादा चर्चा अमेरिकी एनएसए जैक सुलिवन के साथ की. जहां I2U2 में चार देश थे, वहीं IMEC में सात देश और एक यूरोपियन यूनियन शामिल हैं. भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, यूएई, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपियन यूनियन इसके आठ भागीदार देश हैं. ये सभी देश इस प्रोजेक्ट को लेकर साथ आए हैं.
कैसे हुई IMEC की शुरुआत?
अक्टूबर 2021 में सामने आया I2U2 चार देशों का ग्रुप था. इसका मकसद चार देशों के बीच टेक्नोलॉजी और प्राइवेट सेक्टर के सहयोग को बढ़ाना था. I2U2 को लेकर जब चर्चाएं चल रही थीं, उस वक्त IMEC का आइडिया सामने आया. उसी दौरान सऊदी अरब को भी इस प्लान में शामिल कर लिया गया. I2U2 इसलिए बनाया गया था ताकि मिडिल ईस्ट में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके. धीरे-धीरे IMEC ने अपना रूप धारण करना शुरू कर दिया.
IMEC में डोभाल का रोल क्या रहा?
इस साल मई में अजीत डोभाल ने इंफ्रास्ट्रक्चरल प्रोजेक्ट पर चर्चा करने के लिए अमेरिकी समकक्ष जैक सुलिवन और यूएई एवं सऊदी अरब के अधिकारियों के साथ मुलाकात की. इसमें मिडिल ईस्ट क्षेत्र को भारत और दुनिया से जोड़ने की बात हुई. सुलिवन लगातार IMEC को लेकर संकेत देते रहे और उन्होंने यहां तक कहा कि भारत और मिडिल ईस्ट अमेरिका के लिए बहुत जरूरी हैं. इसके लिए एक पूरा प्लान तैयार किया जा रहा है, तभी IMEC को लेकर जानकारी आने लगी.
जून के महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका के राजकीय दौरे पर जाना था. उनके दौरे से पहले इस साल की शुरुआत से ही अजीत डोभाल और जैक सुलिवन की बैठकें शुरू हो चुकी थीं. डोभाल ने इस यात्रा के लिए काफी पहले से ही जमीन तैयार करना शुरू कर दिया था. महीनों की बातचीत में उन्होंने भारत और अमेरिका के बीच विभिन्न महत्वपूर्ण सौदों के लिए आधार तैयार किया. इसका नतीजा ये रहा कि रक्षा और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अमेरिका-भारत करीब आए.
इस दौरान ही IMEC को आगे बढ़ाने का प्लान रखा जाने लगा. पिछले साल मई में भारत और अमेरिका के बीच ‘इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी’ (iCET) पर बात बनी. इसके जरिए दोनों देशों के बीच डिफेंस और टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप को मजबूत करना था. डोभाल ने पीएम मोदी के अमेरिका दौरे से पहले iCET को आकार देना शुरू किया. इसे प्रभाव बनाने के लिए भारत और अमेरिका के बीच एक कॉरिडोर की जरूरत थी.
भारतीय एनएसए ने अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ मिलकर प्लान बनाया कि अगर iCET को कामयाब करना है, तो एक ऐसे कॉरिडोर की जरूरत होगी, जिसमें मिडिल ईस्ट और यूरोप भी शामिल है. इस तरह धीरे-धीरे IMEC ने रूप लेना शुरू किया. जी20 बैठक में जब IMEC को लेकर सहमति बन रही थी, उस वक्त एनएसए अजीत डोभाल भी मौजूद थे. वह प्रधानमंत्री के पीछे बैठे हुए अपने प्लान को सफल होते हुए देख रहे थे.
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