जोशीमठ डूब रहा है: जोशीमठ में दरार वाले संकट को लेकर एनटीपीसी के हाइड्रो पावर प्रॉजेक्ट और टनल को भी जिम्मेदार बताया जा रहा है। इस बीच भारत की सबसे बड़ी बिजली निर्माता कंपनी नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी) ने बिजली मंत्रालय से कहा है कि जोशीमठ के क्षेत्र में जमीन घंसने में एनटीपीसी के प्रॉजेक्ट की कोई भूमिका नहीं है। एनटीपीसी ने कहा कि तपोवन विष्णुगाड पनबिजली परियोजना से जुड़ी 12 किलोमीटर लंबी सुरंग, जोशीमठ शहर से एक किलोमीटर दूर है और जमीन से कम से कम एक किलोमीटर नीचे है।
उत्तराखंड के जोशीमठ में सैकड़ों घरों और छतों में दरारें आने के कारण जमीन के धंसने को बताया जा रहा है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने 10 जनवरी को जोशीमठ में ग्राउंड धंसने की घटना की समीक्षा के लिए एनटीपीसी के अधिकारियों को तलब किया था। इसके एक दिन बाद भारत की सबसे बड़ी उत्पादक कंपनी ने मंत्रालय को अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए पत्र लिखा।
‘सुरंग शहर की बाहरी सीमा से दूर’
एनटीपीसी ने अपने पत्र में लिखा है कि तपोवन विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना के उत्पादन के लिए बांध स्थल पर पानी के अंतर्ग्रहण को बिजलीघर से जोड़ने वाली एक हेड ट्रेस टनल (एचआरटी) “जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजर रही है।” एनटीपीसी ने पत्र में लिखा, “सुरंग जोशीमठ शहर की बाहरी सीमा से लगभग 1.1 किलोमीटर की दूरी पर है। एनटीपीसी ने कहा कि सुरंग की सतह लगभग 1.1 किमी नीचे है।
‘जोशीमठ में जमीन घंसने का मामला पुराना है’
एनटीपीसी ने कहा कि जोशीमठ में धंसने का मामला काफी पुराना है, जो पहली बार 1976 में देखा गया था। एनटीपीसी ने राज्य सरकार की ओर से उसी वर्ष कर्मचारी एम.सी. मिश्रा समिति का हवाला देते हुए, दरारों में जमीन धंसने के लिए “चट्टान या दायित्व के आधार पर मलबा), झुकना का प्राकृतिक कोण, जुड़ाव के कारण खेती का क्षेत्र और भू-क्षरण” को जिम्मेदार बताया गया।
2006 में कार्य निर्माण शुरू हुआ
तपोवन विष्णुगाड परियोजना 4×130 बनने का कार्य नवंबर 2006 में शुरू हुआ। इस परियोजना में तपोवन जोशीमठ शहर से 15 किमी ऊपर की ओर एक कंक्रीट बैराज का निर्माण शामिल है। यह परियोजना मार्च 2013 तक पूरी तरह जानी जाती थी लेकिन लगभग 10 साल बाद भी यह ‘निर्माणाधीन’ है।
एनटीपीसी ने कहा, “इस खंड में सुरंग का निर्माण टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) के माध्यम से किया गया है, जिससे चारों ओर की गड़बड़ी में कोई बाधा नहीं आती है।” एनटीपीसी ने ऊर्जा मंत्रालय को यह भी बताया कि करीब दो साल से इलाके में कोई सक्रिय निर्माण कार्य भी नहीं हुआ है।
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