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कोर्ट कैसे तय करेगा कि अब इस शादी में कुछ नहीं बचा, तलाक ही हार गया रास्ता?

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<पी शैली ="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;"> सोमवार यानी 1 मई को सुप्रीम कोर्ट ने तलाक को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है। जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव फाइलिंग, ए. एस ओका, विक्रम नाथ और जे. के महेश्वरी की संवैधानिक बेंच ने कहा कि अगर पति-पत्नी का रिश्ता टूट गया है और इसमें सुलह की बिल्कुल भी रूपरेखा नहीं बची है, तो ऐसी स्थिति में न्यायालय के संविधान के लेखा-जोखा-142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई शक्तियों का उपयोग किया जाता है तलाक को मंजूरी दे सकते हैं।

कोर्ट के इस फैसले का मतलब है- अब तलाक लेने का फैसला छह महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं है। वि पति और पत्नियां एक दूसरे से तुरंत लॉक भी ले सकते हैं।

हालांकि पांच जजों की याचिका ने इस फैसले को सुनाते हुए ये साफ कहा कि ये तलाक तभी संभव है जब कोर्ट इस बात से पूरा मामला तय कर ले कि शादी टूट चुकी है और पति-पत्नी अब किसी भी बाजार में साथ नहीं रहना चाहते हैं . ऐसे में सवाल उठता है कि कोर्ट तय ये कैसे तय करेगा कि अब इस शादी में कुछ बचा नहीं और तलाक ही खो गया है? 

पहले समझते हैं कि लेखा 142 क्या है

संविधान में सर्वोच्च न्यायालय को लेखा 142 के रूप में एक विशेष शक्ति प्रदान की गई है, जिसका सर्वोच्च न्यायालय का आदेश किसी व्यक्ति को भी पूर्ण न्याय देने के लिए आवश्यक निर्देश दे सकता है। आसान भाषा में समझें तो किस मामले में अभी तक कोई कानून नहीं बना है और सुप्रीम कोर्ट में यह लिखा हुआ है, इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट अकाउंट्स 142 का इस्तेमाल करते हुए फैसला ले सकते हैं। बस इस काल्पनिक से किसी को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए।

किसी मामले में कोर्ट के आदेश तब तक लागू रहेंगे जब तक कि इससे संबंधित प्रावधान को लागू नहीं किया जाता है। बता दें कि ये पहला मामला नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने अकाउंट्स 142 का इस्तेमाल करते हुए कोई फैसला लिया है। बल्कि सुप्रीम कोर्ट 90 के दशक से ही इस अधिकार का उपयोग किसी विशेष मामले में करता है।

कोर्ट कैसे तय करेगा कि अब इस शादी में कुछ बचा नहीं

लाइव लॉ के अनुसार सुप्रीम कोर्ट का संविधान निश्चित तौर पर यह नहीं बताता कि यह शादी अब पूरी तरह टूट गई है, इसे कैसे माना जाए। लेकिन अदालत ने इस अधिकार का इस्तेमाल करने से पहले उन घिसावों का जिक्र जरूर किया जिनके जजों को ध्यान रखना चाहिए.. 

  • शादी के बंधन में बंधने के कितने समय बाद तक पति-पत्नी एक सामान्य अनुबन्ध जी रहे थे।
  • पति-पत्नी ने आखिरी बार संबंध कब बनाया था।
  • पति-पत्नी ने एक दूसरे पर और दोनों के परिवार वालों ने आरोप लगाया है कि यह आरोप बहुत अधिक मात्रा में है।
  • तलाक की कानूनी प्रक्रिया के दौरान क्या-क्या आदेश दिए गए और उनके आपसी संबंधों पर कैसा असर पड़ा।
  • कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद कितनी बार पति पत्नी ने आपस में लिपटने की कोशिश की और आखिरी बार इस तरह की कोशिश कब की गई।
  • पति-पत्नी के कब से अलग रह रहे हैं और ये अवधि पर्याप्त रूप से लंबी होनी चाहिए। छह साल या उससे अधिक समय तक अलग रहना एक अहम कारक होना चाहिए।

सामाजिक और आर्थिक स्थिति भी बेहद जरूरी 

कोर्ट ने इस फैसले को सुनाते हुए ये भी कहा कि कोई भी फैसला सुनाने से पहले यह भी ध्यान रखना होगा कि दोनों पक्षों की पत्नी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति कैसी है, दोनों ही कितने पढ़े-लिखे हैं, उनकी उम्र क्या है, परिवार में कोई बच्चा है या नहीं और है तो उनकी उम्र कितनी है और वो किस कक्षा में पढ़ रहे हैं।

ऐसे में अगर एक पक्ष पति या पत्नी में से कोई एक आर्थिक रूप से दूसरा पक्ष स्थायी है तो जो पक्ष तलाक मांग रहा है वह दूसरा पक्ष और अपने बच्चों के जीवन यापन के लिए किस तरह की मदद करने को तैयार है।

<पी शैली ="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;"तलाक के समय पत्नी की पति से समानता है या नहीं ये कोर्ट किस आधार पर तय करती है

1. कोर्ट का दावा है कि पति के ऊपर कोई ईएमआई या कर्ज नहीं है।
2. माता-पिता निर्भर हैं या नहीं।
3. माता-पिता के ऊपर के इलाज में कितना पैसा खर्च हो रहा है।
4. पति के घर का मानक क्या है, बंटवारा कैसा है।< /पी> <पी शैली ="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;"मुकदमा सीधे सुप्रीम कोर्ट में पैर नहीं रख सकती

हालांकि उच्चतम न्यायालय ने भी स्पष्ट किया कि इस फैसले के आधार पर तलाक का मुकदमा सीधे सुप्रीम कोर्ट में पैरवी नहीं किया जा सकता है।

न्यायालय ने कहा कि कोई भी पति पत्नी संविधान के अनुच्छेद 32 के सर्वोच्च न्यायालय या अनुच्छेद 226 के तहत सीधे उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर इस फैसले के आधार पर तलाक नहीं मांग सकता।

अब पूरा मामला विस्तार से समझें…

साल 2014 में शिल्पा शैलेश और वरुण श्रीनिवास ने सुप्रीम कोर्ट में गंभीर आरोप लगाए थे कि संविधान के लेख 142 के तहत उन्हें अलग कर दिया जाएगा।

वर्तमान में तलाक को लेकर नियम ये है कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13-बी के तहत पति-पत्नी आपसी सहमति के साथ तलाक लेने के लिए फैमिली कोर्ट में जाते हैं। तलाक लेने वाले डंपत्ति को कोर्ट में आरोप लगाता है कि वो एक साल या उससे ज्यादा समय से अलग रह रहे हैं और आगे भी दोनों साथ नहीं रहना चाहते हैं।  

हालांकि वर्तमान में जो तलाक की प्रक्रिया है उसमें इतनी बड़ी दुर्घटनाएं हैं कि सुनवाई की पहली तारीख मिलने में ही साल लग जाते हैं और फिर दूसरी तारीख या अलग होने के लिए कम से कम छह महीने का इंतजार करना पड़ता है।< /पी> <पी शैली ="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;">फैमली कोर्ट पति पत्नी को छह महीने का काम इसलिए देता है ताकि दोनों रास्ते कम हो जाएं और सुलह-सफाई की कोई भी वजह हो और वो तलाक की अर्जी वापस ले सकें।

शिल्पा वरुण की क्या मांग थी?

शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन ने साल 2014 में यही मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट अकाउंटिंग 142 के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए तलाक की अर्जी जल्द से जल्द स्वीकार करें। उनका कहना था कि उनकी शादी में अब सुलह-सफाई की कोई मंजिल नहीं है और दोनों ही इस तलाक को लेकर काफी इंडेक्स हैं। 

याचिका कर्ता के अनुरोध पर विचार करने के लिए वर्ष 2016 में इसे पांच जजों के संविधान के पास भेज दिया गया। साल 2022 के सितंबर महीने में इस मामले की सुनवाई हुई और फ़ैसला सुरक्षित रखा गया। 

क्या कहते हैं जानकार?

बीबीसी की एक रिपोर्ट में पूर्व उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता न्यायमूर्ति अंजना प्रकाश ने न्यायालय के इस फैसले को अहम करार दिया है।

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि ‘यह फैसला बेहद अहम है। पहले भी लॉ कमीशन से लेकर महिला अधिकारों के लिए काम करने वालों ने इसका शॉर्टकट लिया है कि अगर कोई शादी टूटने के मुकाम पर पहुंची है और वापसी की कोई संभावना नहीं बचती है तो उस आधार पर तलाक की अर्जी स्वीकार कर लेनी चाहिए। 

वकील कामिनी जायसवाल बीबीसी से बातचीत में कहती हैं कि पहले लॉ कमीशन भी इसी को लेकर सिफ़ारिश कर चुकी है कि ‘शादी के तोड़ रूप से टूट’ को तलाक का एक आधार बनाया गया, लेकिन अब तक ऐसा कानून नहीं बनाया गया क्योंकि इसके नशे की बहुत आशंका थी।

इस फैसले के बाद तलाक मिलने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी? 

जस्टिस दीपक राव ने एबीपी को बताया कि इस जजमेंट के बाद उन पति-पत्नी को तलाक लेने में आसानी होगी जो अपने तलाक को लेकर या एक दूसरे से अलग होने के जजमेंट पर आ चुके हैं और डेट कर रहे हैं। ऐसे में दोनों की कुछ ऐसा ही है कि जो जल्द हो सकता है कानूनी तौर पर तलाक लेकर अलग हो सकता है।

वर्तमान में तलाक लेना हो तो याचिका दायर की जा सकती है?

वर्तमान में किसी भी पति-पत्नी को तलाक के लिए अर्जी डालनी है तो वह अपने शहर के फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर कर सकती हैं। इसके अलावा पत्नी-पत्नी अलग-अलग शहर में रह रहे हैं तो अपने अनुरुपता के लिए शहर के कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं। वहीं जिस शहर में पत्नी का घर है वहां भी याचिका दायर कर सकती हैं।

पहले भी कई बार अकाउंट 142 का इस्तेमाल हुआ था

ये पहली बार नहीं है कि अकाउंट 142 का उपयोग करते समय कोई निर्णय लिया गया है। साल 2017 में अयोध्या में विवाद विवादों के मामले को रायबरेली से लखनऊ की विशेष अदालत में स्थानांतरित करने के लिए भी फाइलिंग 142 का इस्तेमाल किया गया था। इस मामले में मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी, सहित अन्य घटनाएँ थीं। 

2019 में इसी से जुड़ी अयोध्या जमीन विवाद मामले में यह धारा एक बार फिर इस्तेमाल की गई। इसी तरह पहले भोपा गैस त्रासदी मामले की सुनवाई करते हुए भी अदालत ने सतर्कता के लिए मुआवजे के घोषणा के बाद इस धारा के विशेषाधिकार का उपयोग किया था। जेपी ग्रुप और घर खरीदने वालों के मामले और शादी के मामले में भी कोर्ट का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।



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