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कुछ ही दिनों में लखपति बना देती है ये फसल, बाजार में इसे कहते हैं इम्यूनिटी बूस्टर

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<p>भारतीय किसान अब पारंपरिक फसलों की खेती से ऊब रहे हैं. वो दूसरी तरह की फसलों की खेती कर रहे हैं, जो उन्हें कम समय में ज्यादा मुनाफा दे. आज हम आपको एक ऐसी ही फसल के बारे में बताने वाले हैं जो कम समय में तगड़ा मुनाफा दे सकती है. सबसे बड़ी बात की ये फसल कोई आम फसल नहीं बल्कि एक औषधीय पौधा है जिसकी डिमांड बाजार में खूब है. इसके साथ ही इस फसल की खासियत ये है कि बाजार में इसका हर हिस्सा बिक जाता है. यानी पत्तियों से लेकर जड़ तक सब बाजार में ऊंची कीमत पर बिकता है. दरअसल, हम बात कर रहे हैं अश्वगंधा की. अश्वगंधा एक ऐसी फसल है जिसे आप इम्यूनिटी बूस्टर के तौर पर जानते हैं. तो चलिए आपको बताते हैं कि कैसे होती है इसकी खेती.</p>
<h3>कैसे होती है अश्वगंधा की खेती?</h3>
<p>अश्वगंधा की खेती रबी और खरीफ दोनों सीजन में की जाती है, हालांकि, खरीफ सीजन में मानसून के बारिश के बाद इसकी रोपाई करने से अच्छा अंकुरण होता है. वहीं कृषि विशेषज्ञों की मानें तो मानसून की बारिश के दौरान इसकी पौध तैयार करनी चाहिये और अगस्त या सितंबर के बीच खेत की तैयारी करके अश्वगंधा की पछेती खेती करना फायदेमंद रहता है. आपको बता दें कि इसके खेतों में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें, क्योंकि ज्यादा पानी अश्वगंधा की क्वालिटी की खराब कर सकते हैं. जैविक विधि से खेती करके मिट्टी में पोषण और अच्छी नमी बनाये रखने से ही अच्छा उत्पादन मिल जाता है. प्रति हेक्टेयर फसल में अश्वगंधा की खेती करने पर आपको 4-5 किलेग्राम बीजों कती जरूरत पड़ती है. वहीं रोपाई, सिंचाई और देखभाल के बाद 5 से 6 महीने में अश्वगंधा की फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है. एक अनुमान के मुताबिक, प्रति हेक्टेयर जमीन में अश्वगंधा की खेती करने पर लगभग 10,000 का खर्च आता है, लेकिन फसल का हर हिस्सा बिकने के बाद आपको इससे 70 से 80 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है.</p>
<h3>कहां कहां होती है अश्वगंधा की खेती?</h3>
<p>अश्वगंधा की खेती अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट या हल्की लाल मिट्टी में बेहतर होती है. भारत में इस वक्त इसकी खेती राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के कई किसान कर रहे हैं. अश्वगंधा उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश और राजस्थान का नाम सबसे ऊपर है. यहां मनसा, नीमच, जावड़, मानपुरा, मंदसौर और राजस्थान के नागौर और कोटा में इसकी खेती काफी बड़े पैमाने पर की जाती है.</p>
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