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कुंडली में इस ग्रह के मेहरबान होने पर होती है जुड़वां संतान,ये ग्रह बनते हैं संतान सुख में बाधक

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Jyotish Shastra for Twins: सभी तरह से सुखों में एक हैं संतान का सुख. वहीं संतान अगर जुड़वां हो तो फिर क्या कहने. समझिए कि किस्मत आप पर मेहरबान है. लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में कुछ ग्रहों के मेहरबान होने पर ही जुड़वां संतान का जन्म होता है. ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में जब तक संतान योग नहीं हो या किसी प्रकार की ग्रह बाधा हो तब तक संतान नहीं हो सकती. भले ही आप कई उपचार करा लें.

संतानोत्पत्ति में बाधा उत्पन्न होने से दंपती आहत होते हैं और वे परेशान रहते हैं. तो वहीं स्त्री को भी निस्संतान, बांझ तक कहे जाने का अपमान और ताना सहना पड़ता है. इतना ही नहीं उसे वंश वृद्धि में बाधक होने के आरोप झेलने के लिए विवश होना पड़ता है.

कुंडली में संतान योग है या नहीं जानें 

ज्योतिष शास्त्र मत से विवाह से पूर्व ही विवाह योग्य युवक-युवती की जन्म कुंडलियों के गहरे विश्लेषण, ग्रह, लग्न, नक्षत्र, गुण, गण, भृकुट मिलान आदि से जाना जा सकता है कि कुंडली में संतान योग है या नहीं. अगर संतान योग है तो यह योग विवाह के कितने समय बाद परिणाम देगा और कितनी संताने होंगी? अगर इस योग में बाधा है तो क्या बाधा है? इस के निराकरण के उपाय क्या है? क्या उपचार से यह बाधा हट सकती है या अशुभ-दुष्प्रभाव ग्रह की शांति के लिए पूजा, व्रत, मंत्र जाप, अनुष्ठान आदि ज्योतिष शास्त्र मत की क्रिया संपन्न करनी होगी?

इन विशेष योग से होते हैं जुड़वां बच्चे

ज्योतिष शास्त्र में जुड़वां बच्चों के संबंध में कुछ विशेष योग के बारे में बताया गया है. जिस स्त्री की कुंडली में ये योग होते हैं उसे जुड़वां बच्चे प्राप्त होते हैं.

  •  चंद्रमा और शुक्र ग्रह का एक ही राशि में स्थित होना.
  •  बुध, मंगल और गुरु ग्रह ‍विषम राशि में होना.
  •  लग्न और चंद्रमा समराशि में स्थित हो और पुरुष ग्रह द्वारा देखे जाते हों.
  •  बुध, मंगल, गुरु और लग्न मजबूत हो और समराशि में स्थित हो.
  •  मिथुन या धनुराशि में गुरु-सूर्य हो और बुध से दृष्ट हो तो जुड़वां पुत्र का जन्म होता है.
  • यदि शुक्र, चंद्र, मंगल, कन्या या मीन राशि में बुध से दृष्ट हो तो ऐसे में जुड़वां पुत्रियों का जन्म होता है.
  • स्त्री की कुंडली के सातवें स्थान पर राहु हो या गुरु-शुक्र एक साथ हो तो जुड़वा संतान पैदा होती है लेकिन यह योग विवाह के कई वर्षों बाद बनता है.

इन विशेष ग्रह बाधाओं के कारण संतान सुख में आती है बाधा

शास्त्र मतों से विवाहोपरान्त परिवार की नींव रखी जाती है और समय पर संतान होना, उस संतान का योग्य होना दोनों ही दांपत्य सुख में वृद्धि करते हैं और इससे एक परिवार का निर्माण होता है. लेकिन जब संतान सुख में विलम्ब होने लगे या बाधाएं आये तो इसका कारण जानना अनिवार्य हो जाता है. ज्योतिष में कुछ विशेष ग्रह बाधाओं के बारे में बताया गया है जोकि संतान सुख में बाधा उत्पन्न करते हैं-

नवमे पंचमे राहु: नवमे पंचमे कुज:। नवमे पंचमे सौरि: पुत्र स्वप्रे न दृश्यते॥

यानी जिस जातक के नवम भाव या पंचम भाव में राहु, कुज (मंगल) अथवा शनि हो तो उसे संतान सुख में बाधा उठानी पड़ेगी. शनि की इन भावों में स्थिति शल्यक्रिया यानी ऑपरेशन से संतान प्राप्ति की ओर संकेत देती है.

  • यह मुख्यत: ग्रहों के प्रभाव का आंकलन जन्मकुण्डली, चन्द्रकुण्डली, गोचर भ्रमण, महादशा-अन्तर्दशा आदि से किया जाता है. वर्ष कुण्डली के आधार पर भी संतानोत्पति का निर्धारण है.
  • बताया गया है कि जन्मकुण्डली में पंचम भाव में पुरुष राशि तथा पुरुष संज्ञक ग्रहों की स्थिति पुत्र प्राप्ति की ओर संकेत करती है.
  • इसी प्रकार पंचम भाव में स्त्री राशि तथा स्त्री संज्ञक ग्रहों की उपस्थिति कन्या संतान का फल देती है.
  • पंचम भाव तथा पंचम भाव के स्वामी पर पुरुष ग्रहों की दृष्टि पुत्र प्राप्ति की ओर तथा स्त्री ग्रहों की दृष्टि कन्या सन्तान की ओर संकेत है.
  • प्रसव में अधिक कष्ट होने, सीजर ऑपरेशन द्वारा गर्भस्थ शिशु को बाहर लाने के मुख्य कारक ग्रह स्थिति के प्रभाव हैं. उदाहरणस्वरूप- पुत्र स्थान (पंचम भाव) का स्वामी मंगल के साथ होने से गर्भाशय विकृति के कारण संतान प्राप्ति में बाधा पड़ती है.

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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.



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