Locomotive Headlight: भारतीय रेलवे से रोजाना लाखों की संख्या में लोग सफर करते हैं. यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. रेलवे रोजाना 13 हजार से अधिक ट्रेनों का संचालन करता है. अपने करीब 68 हजार किलोमीटर लंबे विशालकाय नेटवर्क के साथ भारतीय रेलवे की पहुंच देश के कोने-कोने तक है. महानगरों से लेकर कस्बों और गांवों तक रेल की पटरियां बिछी हुई हैं. दिन-रात इन्ही पटरियों पर ट्रेन फर्राटे भरती हैं. ये पटरियां शहरों और जंगलों से भी होकर गुजरती हैं. ऐसे में रात के समय विजिबिलिटी के लिए ट्रेन के इंजन में एक पावरफुल हेडलाइट भी लगी होती है. आइए जानते हैं इस लाइट से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी.
लोकोमोटिव पर होती हैं तीन तरह की लाइटें
ट्रेन के इंजन पर मुख्यतः तीन तरह की लाइटें होती हैं. जिनमें से एक रास्ता देखने के लिए होती है, यानी हेडलाइट और बाकी दो लाइटों में एक सफेद और एक लाल रंग की होती है. इन लाइटों को लोकोमोटिव इंडीकेटर कहते हैं. पहले हेडलाइट को लोकोमोटिव में ऊपर की तरफ लगाया जाता था. हालांकि, अब नए इंजनों में हेडलाइट की जगह बदलकर बीच में कर दी गई है.
350 मीटर का होता है फोकस
ट्रेन के इंजन में लगी हेडलाइट को 24volt के DC करंट से चलाया जाता है. इसका फोकस 350 मीटर की दूरी तक पड़ता है. इस पावरफुल हेडलाइट की मदद से लोको पायलट को रात के समय एक निश्चित दूरी तक रेलवे ट्रैक दिखाई पड़ता है.
क्यों होते हैं 2 बल्ब?
अब बात करते हैं कि ट्रेन की हेडलाइट में कितने बल्ब लगे होते हैं? दरअसल, ट्रेन की हेडलाइट में दो बल्बों का प्रयोग किया जाता है. खास बात यह है कि इन दोनों बल्बों को Parallel यानी समांतर क्रम में कनेक्ट किया जाता है. ताकि रास्ते में अगर एक बल्ब खराब भी हो जाए, तो दूसरे बल्ब की मदद से रस्ता देखा जा सके.
लाल और सफेद रंग की लाइट किसलिए?
लोकोमोटिव में हेडलाइट के अलावा लाल और सफेद रंग की दो-दो लाइटें भी लगी होती हैं. जब इंजन को शंटिंग के लिए उल्टी दिशा में चलाना होता है, तो उस समय लाल रंग की लाइट को ऑन किया जाता है. इससे रेलवे के कर्मचारियों को पता चल जाता है कि लोकोमोटिव शंटिंग के लिए उल्टी दिशा में जा रहा है. वहीं, जब यह शंटिंग के लिए आगे की जाता है तो सफेद रंग की लाइट को ऑन किया जाता है.
यह भी पढ़ें – कम लोग जानते हैं फॉइल पेपर किस तरफ से सीधा होता है? रोटी पैक करते टाइम कौनसा हिस्सा बाहर रहेगा