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इलायची की खुशबू से महकेगा बाग, इस तरह करें जैविक खेती

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Cardamom Cultivation: भारत में किचन में कई तरह के मसालों का इस्तेमाल किया जाता है.  इलायची भी उन्हीं मसालों में शामिल हैं. खाने को खुशबूदार बनाने के साथ ही ये किसान भाइयों की जेब पैसों से भी भर सकती है. इलायची की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, कोंकण, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में की जाती है.

इलायची को सूरज की रोशनी से बचाने के लिए नारियल और सुपारी के बागों में ही उगाया जाता है. इसकी खेती के लिए अधिक बारिश या गर्मी की आवश्यकता नहीं होती. इसके बजाय, मानसून की नमी और आर्द्रता के बीच अपने नए बागों को तैयार करके बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.

इन बातों का रखें ध्यान

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इलायची की खेती के लिए तापमान कम से कम 10 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम 35 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए. 3×3 मीटर के अंतराल पर सुपारी और नारियल के पेड़ लगाए जाते हैं, और हर दो पेड़ के बीच में एक इलायची का पेड़ लगाया जाता है. खेती के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए मानसून के दौरान इसकी तैयारी करके वर्षा जल संग्रह कर सकते हैं.

याद रखें कि इलायची के पेड़ अधिक पानी नहीं सहन कर सकते सिर्फ मिट्टी को नम रखना चाहिए. इलायची को उपजाऊ मिट्टी में लगाने पर हर चार दिन में सिंचाई करनी चाहिए. जैविक रूप से इलायची की खेती करना निश्चित रूप से लाभदायक है. ऐसे में बाग को जैविक तरीके से पोषण प्रदान करना चाहिए.

जब इलायची के फल पककर तैयार हो जाते हैं, तो उनका रंग हरा और पीला हो जाता है. ऐसे में इन्हें डंठल समेत कैंची से काट लिया जाता है. बारिश के मौसम में इलायची बनाना मुश्किल होता है. फल सूखते नहीं हैं, खासकर धूप की कमी होने पर, इसलिए चारकोल की जाली जलाने की सलाह दी जाती है. धीरे-धीरे सूखने पर इलायची की फसल की चमक कम हो जाती है.

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