Hartalika Puja: हरतालिका तीज को तीजा भी कहा जाता है. यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए रखती हैं. यह व्रत निर्जला रखा जाता है यानी इस व्रत के दौरान पानी का एक बूदं भी ग्रहण नहीं किया जाता है. मान्यताओं के अनुसार सर्वप्रथम मां पार्वती ने अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने के लिए भगवान शिव के लिए इस व्रत को रखा था.
सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रखती हैं. वहीं अविवाहित युवतियां अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं. इस बार हरतालिका तीज का व्रत 18 सितंबर, सोमवार के दिन किया जाएगा. आइए जानते हैं कि हरतालिका तीज का व्रत क्यों रखा जाता है.
क्यों रखा जाता है हरतालिका तीज का व्रत? (Hartalika Teej Significance)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरियाली तीज का व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है. यह त्योहार देवी पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर व्रत और तपस्या की थी. यह त्योहार माता पार्वती और भगवान शिव की इसी भक्ति और मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. इस व्रत में महिलाएं जल और अन्न ग्रहण नहीं करती हैं, इसलिए हरतालिका व्रत को बहुत कठिन व्रत माना जाता है. मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को रखती हैं.
हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि (Hartalika Teej Puja Vidhi)
हरतालिका तीज पर माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है. हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है. यह दिन और रात के मिलन का समय होता है. इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत औक काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनानी चाहिए. पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें. देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें.
इस दिन सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाया जाता है. इसमें शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है. यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए. पूजन के बाद तीज की कथा सुननी चाहिए. इस दिन रात्रि जागरण का खास महत्व होता है. आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाना चाहिए और ककड़ी-हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलना चाहिए.
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