https://bulletprofitsmartlink.com/smart-link/133310/4

जितिया व्रत से संतान पर नहीं आता कभी संकट, मिलती है लंबी आयु, जानें ये कथा

Share to Support us


Jitiya Vrat 2023: 6 अक्टूबर 2023 को जितिया व्रत है. इस दिन स्त्रियां संतान की दीर्धायु के लिए 24 घंटे का निर्जला व्रत करती हैं. मान्यता है कि ये व्रत महाभारत काल से चला आ रहा है. कहते हैं इस व्रत के प्रताप से अभिमन्यु के मृत शिशु दोबारा जीवित हो उठा था. इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं.

जितिया व्रत की शुरुआत अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को नहाय खाय से होती है, अगले दिन निर्जला व्रत कर तीसरे दिन पारण किया जाता है. जितिया व्रत में जीमूतवाहन की पूजा की जाती है. शास्त्रों के अनुसार जितिया व्रत कथा के बिना अधूरा माना जाता है.

जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat Katha)

जितिया व्रत में इस कथा का विशेष महत्व है. कथा के अनुसार गंधर्वों के एक राजकुमार थे, जिनका नाम जीमूतवाहन था. जीमूतवाहन पिता की सेवा के लिए युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में चले गए थे. एक दिन जंगल में उनकी मुलाकात एक नागमाता से हुई. जो बड़ी दुखी थी. जीमूतवाहन के नागमाता से विलाप का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि नागों ने पक्षीराज गरुड़ को वचन दिया है कि प्रत्येक दिन वे एक नाग को उनके आहार के रूप में देंगे.

इस समझौते के चलते वृद्धा के पुत्र शंखचूड़ को गरुड़ के सामने जाना था, जिससे वह बहुत परेशान थी. जीमूतवाहन ने नागमाता को वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उनकी रक्षा करके उन्हें वापस लौटा देंगे. जीमूतवाहन खुद को नाग के पुत्र की जगह कपड़े में लिपटकर गरुड़ के सामने उस शिला पर जाकर लेट गए, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है.

जीमूतवाहन ने बचाई बच्चे की जान

गरुड़ आया और शिला पर से अपने जीमूतवाहन को पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ ले गया. गरुड़ ने देखा कि हर बार कि तरह इस बार नाग न चिल्ला रहा है और न ही रो रहा है. उसने कपड़ा हटाया तो जीमूतवाहन को पाया. जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बताई, जिसके बाद गरुड़ ने उन्हें छोड़ दिया. इतना ही नहीं, नागों को न खाने का भी वचन दिया. इस तरह से जीमूतवाहन ने नागों की रक्षा की, तभी से संतान की सुरक्षा और सुख के लिए जितिया व्रत में जीमूतवाहन की पूजा शुभ फलदायी मानी गई है.

जितिया व्रत को क्यों कहते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत

महाभारत युद्ध में अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया था. शिविर के अंदर पांच लोग को सोया पाए, अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, लेकिन ये पांडव नहीं द्रोपदी की पांच संतानें थी. क्रोध में आकर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि उसके माथे से निकाल ली.

ऐसे पड़ा नाम जीवित्पुत्रिका

अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे को जीवित्पुत्रिका के नाम से भी जाना जाता है. इस घटना के बाद से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाता है.



Source link


Share to Support us

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Download Our Android Application for More Updates

X