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बॉडी में सप्लीमेंट्स का काम करते हैं ये मोटे अनाज… मगर किसानों को इनसे क्या फायदा होगा?

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Millets Cultivation: भारत के प्रस्ताव पर 72 देशों के समर्थन के बाद साल 2023 को इंटरनेशनल मिलेट ईयर घोषित कर दिया गया है. इसका प्रमुख उद्देश्य मिलेट की उपयोगिता और उत्पादन को बढ़ावा देना है, ताकि पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. ये मोटे अनाज गेहूं-चावल जैसे साधारण अनाजों से कहीं ज्यादा पौष्टिक हैं. इसमें ज्वार, बाजरा, रागी, कुट्टु, कंगनी, सांवा, कोदो शामिल हैं. इन मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कई योजनाएं लेकर आई हैं. राज्यों में मोटे अनाजों के बीजों को अनुदान पर उपलब्ध करवाया जा रहा है. इन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की भी प्लानिंग है. ये किसानों के लिए एक बड़ी अपॉर्चुनिटी है, क्योंकि दूसरी अनाजी फसलों के मुकाबले मोटा अनाज बेहद कम लागत और कम संसाधन में ही पैदा हो जाता है. इतना ही नहीं, ये फसल जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील है.

किसानों को मिलेंगे ये फायदे

बेशक आधुनिक मशीनें और तकनीकों ने खेती-किसानी को कई गुना आसान बना दिया है, लेकिन इस क्षेत्र में चुनौतियां कम नहीं है. ऊपर से कीटनाशक, उर्वरक और कृषि इनपुट्स की बढ़ती मंहगाई के कारण खेती की लागत भी बढ़ती जा रही है. ये किसानों के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि जैसे-जैसे खेती की लागत बढ़ती है. फसल से किसानों को मुनाफा कम हो जाता है.

गेहूं-धान जैसी फसलों  में इनपुट्स की लागत काफी ज्यादा है. इनमें जलवायु परिवर्तन के कारण काफी नुकसान भी देखा जा रहा है, लेकिन मोटा अनाज में कम खर्च के साथ-साथ नुकसान की संभावना भी काफी कम है. ये किसानों के लिहाज से इसलिए भी फायदेमंद हैं, क्योंकि इन्हें उगाने से लेकर कटाई-छंटाई में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती. किसानों की मेहनत कम होती है और फसल के सही दाम भी मिल जाते हैं.

आमतौर पर मोटा अनाज को कम लागत में अधिक उत्पादन के लिए जानते हैं. कम सिंचाई में फसल पककर तैयार हो जाती है. कीट-रोगों को कुछ खास डर नहीं रहता, इसलिए कीटनाशक और उर्वरकों का खर्च काफी हद तक कम हो जाता है. पिछले कुछ सालों में लोग मिलेट्स के प्रति जागरूक हो रहे हैं.

अब पूरी दुनिया को मोटा अनाज के स्वास्थ्य लाभ भी समझ आ रहे हैं, इसलिए इनकी डिमांड बढ़ रही है. यही वजह है कि अब मिलेट की खेती करने वाले कई किसानों ने अपनी मिलेट प्रोसेसिंग यूनिट्स लगाई हैं. मिलेट फूड स्टार्ट अप और ब्रांड्स को बढ़ावा मिल रहा है. इससे सीधा फायदा किसान को ही है. इनके उत्पाद बाजार में काफी पसंद किए जा रहे हैं.

एक तरह से देखा जाए तो ये मोटा अनाज किसानों को कम खर्च में उत्पादन से लेकर बाजार में अच्छे दाम दिलाने में मददगार साबित हो रहे हैं. गांव में खेती करने वाले किसान अलग से राशन-पानी नहीं खरीदते, बल्कि खेत से निकली उपज से ही परिवार के भरण-पोषण का इंतजाम कर लेते हैं. इस तरह मोटा अनाज उगाने वाले किसान परिवारों में पोषण सुरक्षा का मामला भी हल हो जाता है. 

बढ़ रहा है मोटा अनाज का निर्यात

जानकारी के लिए बता दें कि पूरी दुनिया में मिलेट्स की पैदावार का 41 फीसदी भारत से ही मिलता है. हमारा देश मोटा अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक है. देश में मिलेट की खपत होती ही है, लेकिन अब स्वाद और फायदों के मद्देनजर पूरी दुनिया मिलेट्स को पसंद कर रही हैं.

रिपोर्ट्स की मानें तो साल 2021-22 में मोटा अनाज के निर्यात में 8 फीसदी की ग्रोथ दर्ज की गई है. भारत से मिलेट मंगवाने वाले देशों में अमेरिका, यूएई, ब्रिटेन, नेपाल, सऊदी अरब, यमन, लीबिया, ओमान और मिस्र का नाम शुमार है.

इस साल भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है. इसके जरिए दुनिया का मिलेट के बारे में जागरूक करने का एक अच्छा अवसर मिल गया है. भारत में आयोजित जी-20 सम्मेलनों में शरीक होने वाले दूसरे देशों के प्रतिनिधियों को मिलेट से बने व्यंजन परोसे जा रहे हैं, इन्हें काफी पसंद भी किया जा रहा है.

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